Live Law: National: Saturday, June 21, 2025.
इस एक्ट की धारा 19 में अपील की व्यवस्था की गयी है जिसके अनुसार,
(1) ऐसा कोई व्यक्ति, जिसे
धारा 7 की उपधारा (1)
या उपधारा (3) के खण्ड (क) में विनिर्दिष्ट समय के भीतर कोई
विनिश्चय प्राप्त नहीं हुआ है या जो,
यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी के
किसी विनिश्चय से व्यथित है,
उस अवधि की समाप्ति से
या ऐसे किसी विनिश्चय की प्राप्ति से तीस दिन के भीतर ऐसे अधिकारी को अपील कर
सकेगा, जो प्रत्येक लोक प्राधिकरण में, यथास्थिति,
केन्द्रीय लोक सूचना
अधिकारी या लोक सूचना अधिकारी की पंक्ति से ज्येष्ठ पंक्ति का है।
परन्तु ऐसा अधिकारी, तीस दिन की अवधि की समाप्ति के पश्चात् अपील को ग्रहण कर सकेगा, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि अपीलार्थी समय पर अपील फाइल करने में पर्याप्त कारण से निवारित किया गया था।
(2) जहाँ अपील धारा 11 के अधीन, यथास्थिति, किसी केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या किसी राज्य लोक सूचना अधिकारी द्वारा पर व्यक्ति की सूचना प्रकट करने के लिए किए गए किसी आदेश के विरुद्ध की जाती है वहां संबंधित पर व्यक्ति द्वारा अपील उस आदेश की तारीख से 30 दिन के भीतर की जाएगी।
(3) उपधारा (1) के अधीन विनिश्चय के विरुद्ध दूसरी अपी उस तारीख से, जिसको विनिश्चय किया जाना चाहिए था या वास्तव में प्राप्त किया गया था, नब्बे दिन के भीतर केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग को होगी।
परन्तु यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग नब्बे दिन की अवधि की समाप्ति के पश्चात् अपील को ग्रहण कर सकेगा, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि अपीलार्थी समय पर अपील फाइल करने से पर्याप्त कारण से निवारित किया गया था।
(4) यदि यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी का विनिश्चय, जिसके विरुद्ध अपील की गई है, पर व्यक्ति की सूचना से संबंधित है तो यथास्थिति केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग उस पर व्यक्ति को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देगा।
(5) अपील संबंधी किन्हीं कार्यवाहियों में यह साबित करने का भार कि अनुरोध को अस्वीकार करना न्यायोचित था, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी पर, जिसने अनुरोध से इंकार किया था, होगा।
(6) उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन किसी अपील का निपटारा, लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से अपील की प्राप्ति के तीस दिन के भीतर या ऐसी विस्तारित अवधि के भीतर जो उसके फाइल किए जाने की तारीख से कुल पैंतालीस दिन से अधिक न हो, किया जाएगा।
(7) यथास्थिति, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग का विनिश्चय आबद्धकर होगा।
(8) अपने विनिश्चय में, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग को निम्नलिखित की शक्ति है:-
(क) लोक प्राधिकरण से ऐसे उपाय करने की अपेक्षा करना, जो इस अधिनियम के उपबंधों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हो, जिनके अंतर्गत निम्नलिखित भी हैं-
(i) सूचना तक पहुँच उपलब्ध कराना, यदि विशिष्ट प्ररूप में ऐसा अनुरोध किया गया है।
(ii) यथास्थिति केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी को नियुक्त करना।
(iii) कतिपय सूचना या सूचना के प्रवर्गों को प्रकाशित करना।
(iv) अभिलेखों के अनुरक्षण, प्रबंध और विनाश से संबंधित अपनी पद्धतियों में आवश्यक परिवर्तन करना। (v) अपने अधिकारियों के लिए सूचना के अधिकार के संबंध में प्रशिक्षण के उपबंध को बढ़ाना।
(vi) धारा 4 की उपधारा (1) के खण्ड (ख) के अनुसरण में अपनी वार्षिक रिपोर्ट उपलब्ध कराना।
(ख) लोक प्राधिकारी से शिकायतकर्ता को, उसके द्वारा सहन की गई किसी हानि या अन्य नुकसान के लिए प्रतिपूरित करने की अपेक्षा करना।
(ग) इस अधिनियम के अधीन उपबंधित शास्तियों में से कोई शास्ति अधिरोपित करना।
(घ) आवेदन को नामंजूर करना।
(9) यथास्थिति, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग शिकायतकर्ता और लोक प्राधिकारी को, अपने विनिश्चय की, जिसके अंतर्गत अपील का कोई अधिकार भी है, सूचना देगा।
(10) यथास्थिति, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, अपील का विनिश्चय ऐसी प्रक्रिया के अनुसार करेगा, जो विहित की जाए।
यह धारा अपील की प्रक्रिया के लिए प्रावधान करती है। प्रथम अपील आक्षेपित आदेश को प्राप्त करने से 30 दिनों के भीतर केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी, यथास्थिति, की श्रेणी से उच्चतर श्रेणी धारण करने वाले अधिकारी के समक्ष दाखिल होती है।
दूसरी अपील केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, यथास्थिति के समक्ष दाखिल होती है। अपील का समय प्रथम अपोलीय प्राधिकारी से आदेश को प्राप्ति की तारीख से नब्बे दिन है।
अपीलीय प्राधिकारी को नियत अवधि के अवसान के पश्चात् अपील ग्रहण करने की शक्ति होगी, यदि उन्हें समाधान है कि अपील दाखिल करने में ऐसे विलम्ब के लिए युक्तियुक्त कारण है।
प्रथम अपीलीय प्राधिकारी को तीस दिनों के भीतर अपील का निस्तारण करना चाहिए और द्वितीय अपील प्राधिकारी को 45 दिनों के भीतर अपील का निस्तारण करना चाहिए। प्रथम और द्वितीय अपील दाखिल करने के लिए अधिकार पर पक्षकार को उपलब्ध है, यदि ईप्सित सूचना पर पक्षकार से सम्बन्धित है।
यह धारा अपीलीय प्राधिकारी/फोरम से यथासम्भव शीघ्र विवाद पर विचार करने और निस्तारण करने के लिये प्रावधान करती है।
लोक प्राधिकारी या तो सूचना देने या सूचना प्रदान करने के लिये कर्तव्य से आबद्ध है। अधिनियम के प्रावधानों के अधीन मुख्य सूचना आयुक्त अतिरिक्त अनुरोध जैसे ध्वस्तीकरण इत्यादि को ध्वस्तीकरण के आदेश को पारित करने के लिये प्रदान नहीं कर सकता, जो पूर्ण रूप से मुख्य सूचना अधिकारिता के परे है।
राज्य लोक सूचना अधिकारी द्वारा पारित आदेश से व्यक्ति को अपील दाखिल करने का अधिकार है। यह आदेश मो० वारिस बनाम स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल ए आई आर 2011 (एस ओ सी) 138 (कलकत्ता) के मामले में दिया गया है।
अपीलार्थी ने इन तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में कि चाही गई सूचना उसे प्रदत्त कर दी गई है अपील को वापस से लिया। इस परिस्थिति में अपीलीय प्राधिकारी अपील से व्यवहार नहीं कर सकता और सूचना अधिकारी के विरुद्ध शास्ति अधिरोपित नहीं कर सकता।
सूचना आयोग की प्रथम अपीलीय प्राधिकारी में अपीलें सुनने को शक्ति प्राप्त है और इस प्रकार इसे इस बात की जांच करनी है कि क्या अपीलीय प्राधिकारी और लोक सूचना अधिकारों का भी आदेश सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के प्रावधानों तथा संविधान द्वारा अधिरोपित परिसीमाओं के अनुरूप है।
इस पृष्ठभूमि में किसी भी कोर्ट को यह अभिनिर्धारित करने में कोई हिचकिचाहट नहीं हो सकती है. कि सूचना आयोग सिविल कोर्ट का पाश रखने वाले अधिकार के समान है और यह अर्द्धन्यायिक कार्यों को सम्पन्न कर रहा है।
इस अधिनियम के विभिन्न प्रावधान विधि की इस अप्रश्नास्पद प्रतिपादना के स्पष्ट संकेतक हैं कि आयोग न्यायिक अधिकरण, न कि अनुसचिवीय अधिकरण है। यह महत्वपूर्ण भाग है तथा अनुसचिवीय अधिकरण, जो अधिक प्रभावित तथा नियंत्रित होता है और प्रशासन की मशीनरी के अनुसार कार्यों को सम्पन्न करता है, से भिन्न न्याय प्रशासन से संलग्न प्रणाली का भाग है।
इस एक्ट की धारा 19 में अपील की व्यवस्था की गयी है जिसके अनुसार,
परन्तु ऐसा अधिकारी, तीस दिन की अवधि की समाप्ति के पश्चात् अपील को ग्रहण कर सकेगा, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि अपीलार्थी समय पर अपील फाइल करने में पर्याप्त कारण से निवारित किया गया था।
(2) जहाँ अपील धारा 11 के अधीन, यथास्थिति, किसी केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या किसी राज्य लोक सूचना अधिकारी द्वारा पर व्यक्ति की सूचना प्रकट करने के लिए किए गए किसी आदेश के विरुद्ध की जाती है वहां संबंधित पर व्यक्ति द्वारा अपील उस आदेश की तारीख से 30 दिन के भीतर की जाएगी।
(3) उपधारा (1) के अधीन विनिश्चय के विरुद्ध दूसरी अपी उस तारीख से, जिसको विनिश्चय किया जाना चाहिए था या वास्तव में प्राप्त किया गया था, नब्बे दिन के भीतर केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग को होगी।
परन्तु यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग नब्बे दिन की अवधि की समाप्ति के पश्चात् अपील को ग्रहण कर सकेगा, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि अपीलार्थी समय पर अपील फाइल करने से पर्याप्त कारण से निवारित किया गया था।
(4) यदि यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी का विनिश्चय, जिसके विरुद्ध अपील की गई है, पर व्यक्ति की सूचना से संबंधित है तो यथास्थिति केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग उस पर व्यक्ति को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देगा।
(5) अपील संबंधी किन्हीं कार्यवाहियों में यह साबित करने का भार कि अनुरोध को अस्वीकार करना न्यायोचित था, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी पर, जिसने अनुरोध से इंकार किया था, होगा।
(6) उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन किसी अपील का निपटारा, लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से अपील की प्राप्ति के तीस दिन के भीतर या ऐसी विस्तारित अवधि के भीतर जो उसके फाइल किए जाने की तारीख से कुल पैंतालीस दिन से अधिक न हो, किया जाएगा।
(7) यथास्थिति, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग का विनिश्चय आबद्धकर होगा।
(8) अपने विनिश्चय में, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग को निम्नलिखित की शक्ति है:-
(क) लोक प्राधिकरण से ऐसे उपाय करने की अपेक्षा करना, जो इस अधिनियम के उपबंधों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हो, जिनके अंतर्गत निम्नलिखित भी हैं-
(i) सूचना तक पहुँच उपलब्ध कराना, यदि विशिष्ट प्ररूप में ऐसा अनुरोध किया गया है।
(ii) यथास्थिति केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी को नियुक्त करना।
(iii) कतिपय सूचना या सूचना के प्रवर्गों को प्रकाशित करना।
(iv) अभिलेखों के अनुरक्षण, प्रबंध और विनाश से संबंधित अपनी पद्धतियों में आवश्यक परिवर्तन करना। (v) अपने अधिकारियों के लिए सूचना के अधिकार के संबंध में प्रशिक्षण के उपबंध को बढ़ाना।
(vi) धारा 4 की उपधारा (1) के खण्ड (ख) के अनुसरण में अपनी वार्षिक रिपोर्ट उपलब्ध कराना।
(ख) लोक प्राधिकारी से शिकायतकर्ता को, उसके द्वारा सहन की गई किसी हानि या अन्य नुकसान के लिए प्रतिपूरित करने की अपेक्षा करना।
(ग) इस अधिनियम के अधीन उपबंधित शास्तियों में से कोई शास्ति अधिरोपित करना।
(घ) आवेदन को नामंजूर करना।
(9) यथास्थिति, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग शिकायतकर्ता और लोक प्राधिकारी को, अपने विनिश्चय की, जिसके अंतर्गत अपील का कोई अधिकार भी है, सूचना देगा।
(10) यथास्थिति, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, अपील का विनिश्चय ऐसी प्रक्रिया के अनुसार करेगा, जो विहित की जाए।
यह धारा अपील की प्रक्रिया के लिए प्रावधान करती है। प्रथम अपील आक्षेपित आदेश को प्राप्त करने से 30 दिनों के भीतर केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी, यथास्थिति, की श्रेणी से उच्चतर श्रेणी धारण करने वाले अधिकारी के समक्ष दाखिल होती है।
दूसरी अपील केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, यथास्थिति के समक्ष दाखिल होती है। अपील का समय प्रथम अपोलीय प्राधिकारी से आदेश को प्राप्ति की तारीख से नब्बे दिन है।
अपीलीय प्राधिकारी को नियत अवधि के अवसान के पश्चात् अपील ग्रहण करने की शक्ति होगी, यदि उन्हें समाधान है कि अपील दाखिल करने में ऐसे विलम्ब के लिए युक्तियुक्त कारण है।
प्रथम अपीलीय प्राधिकारी को तीस दिनों के भीतर अपील का निस्तारण करना चाहिए और द्वितीय अपील प्राधिकारी को 45 दिनों के भीतर अपील का निस्तारण करना चाहिए। प्रथम और द्वितीय अपील दाखिल करने के लिए अधिकार पर पक्षकार को उपलब्ध है, यदि ईप्सित सूचना पर पक्षकार से सम्बन्धित है।
यह धारा अपीलीय प्राधिकारी/फोरम से यथासम्भव शीघ्र विवाद पर विचार करने और निस्तारण करने के लिये प्रावधान करती है।
लोक प्राधिकारी या तो सूचना देने या सूचना प्रदान करने के लिये कर्तव्य से आबद्ध है। अधिनियम के प्रावधानों के अधीन मुख्य सूचना आयुक्त अतिरिक्त अनुरोध जैसे ध्वस्तीकरण इत्यादि को ध्वस्तीकरण के आदेश को पारित करने के लिये प्रदान नहीं कर सकता, जो पूर्ण रूप से मुख्य सूचना अधिकारिता के परे है।
राज्य लोक सूचना अधिकारी द्वारा पारित आदेश से व्यक्ति को अपील दाखिल करने का अधिकार है। यह आदेश मो० वारिस बनाम स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल ए आई आर 2011 (एस ओ सी) 138 (कलकत्ता) के मामले में दिया गया है।
अपीलार्थी ने इन तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में कि चाही गई सूचना उसे प्रदत्त कर दी गई है अपील को वापस से लिया। इस परिस्थिति में अपीलीय प्राधिकारी अपील से व्यवहार नहीं कर सकता और सूचना अधिकारी के विरुद्ध शास्ति अधिरोपित नहीं कर सकता।
सूचना आयोग की प्रथम अपीलीय प्राधिकारी में अपीलें सुनने को शक्ति प्राप्त है और इस प्रकार इसे इस बात की जांच करनी है कि क्या अपीलीय प्राधिकारी और लोक सूचना अधिकारों का भी आदेश सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के प्रावधानों तथा संविधान द्वारा अधिरोपित परिसीमाओं के अनुरूप है।
इस पृष्ठभूमि में किसी भी कोर्ट को यह अभिनिर्धारित करने में कोई हिचकिचाहट नहीं हो सकती है. कि सूचना आयोग सिविल कोर्ट का पाश रखने वाले अधिकार के समान है और यह अर्द्धन्यायिक कार्यों को सम्पन्न कर रहा है।
इस अधिनियम के विभिन्न प्रावधान विधि की इस अप्रश्नास्पद प्रतिपादना के स्पष्ट संकेतक हैं कि आयोग न्यायिक अधिकरण, न कि अनुसचिवीय अधिकरण है। यह महत्वपूर्ण भाग है तथा अनुसचिवीय अधिकरण, जो अधिक प्रभावित तथा नियंत्रित होता है और प्रशासन की मशीनरी के अनुसार कार्यों को सम्पन्न करता है, से भिन्न न्याय प्रशासन से संलग्न प्रणाली का भाग है।