Dainik Bhaskar: UP-Rampur: Monday, 10 February 2025.
रामपुर में एक पंचायत सचिव द्वारा सूचना के अधिकार (RTI) के तहत मांगी गई जानकारी को छिपाने का मामला सामने आया है। राज्य सूचना आयोग ने इस मामले में कड़ी कार्रवाई करते हुए पंचायत सचिव पर 50,000 रुपए का जुर्माना लगाया है।
मामला बिलासपुर विकास खंड के औरंगनगर खेड़ा का है, जहां RTI कार्यकर्ता एडवोकेट अमित अग्रवाल ने वर्ष 2021 और 2022 में ग्राम पंचायत में हुए विकास कार्यों पर खर्च की जानकारी मांगी थी। पंचायत सचिव ने दोनों आवेदनों पर कोई जवाब नहीं दिया, जिसके बाद मामला राज्य सूचना आयोग तक पहुंचा।
सुनवाई के दौरान सूचना आयुक्त मोहम्मद नदीम ने पंचायत सचिव को दोषी पाया और प्रत्येक मामले में 25-25 हजार रुपए का जुर्माना लगाया। सूचना आयोग के रजिस्ट्रार ने 8 जनवरी 2025 को जिला पंचायत राज अधिकारी (DPRO) को नोटिस जारी कर जुर्माने की राशि पंचायत सचिव के वेतन से काटने का आदेश दिया है।
यह कार्रवाई सूचना के अधिकार कानून के प्रभावी क्रियान्वयन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो सरकारी अधिकारियों को पारदर्शिता बनाए रखने का संदेश देती है। इस फैसले से जहां एक ओर नागरिकों के सूचना के अधिकार की रक्षा होगी, वहीं दूसरी ओर सरकारी कर्मचारियों को भी जवाबदेह बनने की प्रेरणा मिलेगी।
रामपुर में एक पंचायत सचिव द्वारा सूचना के अधिकार (RTI) के तहत मांगी गई जानकारी को छिपाने का मामला सामने आया है। राज्य सूचना आयोग ने इस मामले में कड़ी कार्रवाई करते हुए पंचायत सचिव पर 50,000 रुपए का जुर्माना लगाया है।
मामला बिलासपुर विकास खंड के औरंगनगर खेड़ा का है, जहां RTI कार्यकर्ता एडवोकेट अमित अग्रवाल ने वर्ष 2021 और 2022 में ग्राम पंचायत में हुए विकास कार्यों पर खर्च की जानकारी मांगी थी। पंचायत सचिव ने दोनों आवेदनों पर कोई जवाब नहीं दिया, जिसके बाद मामला राज्य सूचना आयोग तक पहुंचा।
सुनवाई के दौरान सूचना आयुक्त मोहम्मद नदीम ने पंचायत सचिव को दोषी पाया और प्रत्येक मामले में 25-25 हजार रुपए का जुर्माना लगाया। सूचना आयोग के रजिस्ट्रार ने 8 जनवरी 2025 को जिला पंचायत राज अधिकारी (DPRO) को नोटिस जारी कर जुर्माने की राशि पंचायत सचिव के वेतन से काटने का आदेश दिया है।
यह कार्रवाई सूचना के अधिकार कानून के प्रभावी क्रियान्वयन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो सरकारी अधिकारियों को पारदर्शिता बनाए रखने का संदेश देती है। इस फैसले से जहां एक ओर नागरिकों के सूचना के अधिकार की रक्षा होगी, वहीं दूसरी ओर सरकारी कर्मचारियों को भी जवाबदेह बनने की प्रेरणा मिलेगी।
