News18: Jabalpur: Saturday,
23 November 2024.
जबलपुर में आईटीआई में पता चला है कि पोस्ट ऑफिस से मिलने वाला गंगाजल पीने लायक नहीं है. जो गंगाजल आप पोस्ट ऑफिस से ला रहे हैं, वह पीने लायक नहीं है. यह बात कोई और नहीं, बल्कि बोतल पर लगा स्टिकर ही कह रहा है. इस बात का खुलासा उस वक्त हुआ जब जबलपुर एक आरटीआई एक्टिविस्ट ने बोतल को गौर से देखा. उन्होंने इसे लेकर पोस्ट ऑफिस अधिकारियों से सवाल-जवाब भी किया है.
सनातन संस्कृति में भारत की नदियों के जल को सबसे पवित्र माना जाता है. इन नदियों में भी सबसे पवित्र गंगा को माना गया है. कहा जाता है कि गंगा के दर्शन मात्र से भक्तों के कष्ट दूर हो जाते हैं. यदि गंगा में स्नान कर उसका आचमन किया जाए तो पुण्य भी मिलता है. लेकिन, क्या हो यदि गंगाजल को पीने से रोकने की बात सामने आए. निश्चित तौर पर इससे आस्था को ठेस पहुंचेगी और कई सारे सवाल उठने लगेंगे. ऐसा हो भी रहा है.
दरअसल, भारत सरकार ने पोस्ट ऑफिस के जरिए घर-घर गंगाजल पहुंचने की योजना शुरू की थी. साल 2016 से पोस्ट ऑफिस में गंगाजल की बोतल आम जनता के लिए उपलब्ध है. लेकिन, जिस गंगाजल की बोतल को आप पोस्ट ऑफिस से खरीद रहे हैं वह गंगाजल पीने लायक नहीं है. यह हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि गंगाजल की बोतल में ही लिखा हुआ है “नॉट फॉर ड्रिंकिंग.” यानी साफ है जिस गंगाजल को पवित्र समझकर आप अपने घर ले जा रहे हैं उस गंगाजल का इस्तेमाल पूजन में तो करें लेकिन पीएं नहीं. अब सवाल यह उठता है कि जिस गंगाजल को श्रद्धा के साथ पीने के लिए ही खरीदा जाता है ऐसे में वह गंगाजल पीने योग्य क्यों नहीं है.
आरटीआई में मिला ये जवाब:
जबलपुर के सामाजिक कार्यकर्ता और आरटीआई एक्टिविस्ट अखिलेश त्रिपाठी ने आरटीआई के जरिये इस सवाल का जवाब मांगा. डाक विभाग में लगाई गई आरटीआई से जो जवाब आया है वह भी हैरान कर देने वाला है. आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक गंगाजल प्रोजेक्ट के तहत गंगोत्री से गंगाजल उत्तरकाशी के मुख्य डाकघर में लाया जाता है. यहीं पानी को छानने, बोतल में भरने की पूरी प्रक्रिया मानवीय तरीके से ही की जाती है. चूंकि, यह जल आस्था और सनातन संस्कृति की भावनाओं से जुड़ा है इसलिए गंगाजल को बोतल में भरने, पैकेजिंग और सप्लाई की प्रक्रिया के लिए किसी भी तरह का वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट या पैकेजिंग प्लांट स्थापित नहीं किया गया है. डाक विभाग के जवाब में लिखा हुआ है कि पूरी प्रक्रिया में डाक विभाग नो प्रॉफिट नो लॉस के तहत ही प्रोजेक्ट संचालित कर रहा है.
बंद कर दें ये प्रोजेक्ट- त्रिपाठी:
अखिलेश त्रिपाठी का कहना है कि गंगाजल का प्रयोग सबसे ज्यादा आचमन करने के लिए होता है. गंगाजल इसलिए खरीदा जाता है कि वह घर में रखा जा सके. अगर ऐसे में वह गंगाजल पीने योग्य नहीं है तो फिर ऐसे प्रोजेक्ट को बंद किया जाना चाहिए या फिर ऐसा गंगाजल उपलब्ध कराना चाहिए जो पीने लायक हो. वहीं, डाक विभाग के अधिकारियों भी इस मसले पर हैरान हैं. क्योंकि, उनकी नजर भी कभी बोतल के उस स्टिकर पर नहीं पड़ी जहां लिखा हुआ है नोट फॉर ड्रिंकिंग. सीनियर पोस्ट मास्टर मंगल पाटिल का कहना है कि लोगों में गंगाजल की मांग है. सावन के महीने में सबसे ज्यादा गंगाजल की बोतल बिकती है. वे भी इस संबंध में जानकारी जुटाएंगे कि गंगाजल की बोतल पर यह संदेश क्यों लिखा गया है ?
जबलपुर में आईटीआई में पता चला है कि पोस्ट ऑफिस से मिलने वाला गंगाजल पीने लायक नहीं है. जो गंगाजल आप पोस्ट ऑफिस से ला रहे हैं, वह पीने लायक नहीं है. यह बात कोई और नहीं, बल्कि बोतल पर लगा स्टिकर ही कह रहा है. इस बात का खुलासा उस वक्त हुआ जब जबलपुर एक आरटीआई एक्टिविस्ट ने बोतल को गौर से देखा. उन्होंने इसे लेकर पोस्ट ऑफिस अधिकारियों से सवाल-जवाब भी किया है.
सनातन संस्कृति में भारत की नदियों के जल को सबसे पवित्र माना जाता है. इन नदियों में भी सबसे पवित्र गंगा को माना गया है. कहा जाता है कि गंगा के दर्शन मात्र से भक्तों के कष्ट दूर हो जाते हैं. यदि गंगा में स्नान कर उसका आचमन किया जाए तो पुण्य भी मिलता है. लेकिन, क्या हो यदि गंगाजल को पीने से रोकने की बात सामने आए. निश्चित तौर पर इससे आस्था को ठेस पहुंचेगी और कई सारे सवाल उठने लगेंगे. ऐसा हो भी रहा है.
दरअसल, भारत सरकार ने पोस्ट ऑफिस के जरिए घर-घर गंगाजल पहुंचने की योजना शुरू की थी. साल 2016 से पोस्ट ऑफिस में गंगाजल की बोतल आम जनता के लिए उपलब्ध है. लेकिन, जिस गंगाजल की बोतल को आप पोस्ट ऑफिस से खरीद रहे हैं वह गंगाजल पीने लायक नहीं है. यह हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि गंगाजल की बोतल में ही लिखा हुआ है “नॉट फॉर ड्रिंकिंग.” यानी साफ है जिस गंगाजल को पवित्र समझकर आप अपने घर ले जा रहे हैं उस गंगाजल का इस्तेमाल पूजन में तो करें लेकिन पीएं नहीं. अब सवाल यह उठता है कि जिस गंगाजल को श्रद्धा के साथ पीने के लिए ही खरीदा जाता है ऐसे में वह गंगाजल पीने योग्य क्यों नहीं है.
आरटीआई में मिला ये जवाब:
जबलपुर के सामाजिक कार्यकर्ता और आरटीआई एक्टिविस्ट अखिलेश त्रिपाठी ने आरटीआई के जरिये इस सवाल का जवाब मांगा. डाक विभाग में लगाई गई आरटीआई से जो जवाब आया है वह भी हैरान कर देने वाला है. आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक गंगाजल प्रोजेक्ट के तहत गंगोत्री से गंगाजल उत्तरकाशी के मुख्य डाकघर में लाया जाता है. यहीं पानी को छानने, बोतल में भरने की पूरी प्रक्रिया मानवीय तरीके से ही की जाती है. चूंकि, यह जल आस्था और सनातन संस्कृति की भावनाओं से जुड़ा है इसलिए गंगाजल को बोतल में भरने, पैकेजिंग और सप्लाई की प्रक्रिया के लिए किसी भी तरह का वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट या पैकेजिंग प्लांट स्थापित नहीं किया गया है. डाक विभाग के जवाब में लिखा हुआ है कि पूरी प्रक्रिया में डाक विभाग नो प्रॉफिट नो लॉस के तहत ही प्रोजेक्ट संचालित कर रहा है.
बंद कर दें ये प्रोजेक्ट- त्रिपाठी:
अखिलेश त्रिपाठी का कहना है कि गंगाजल का प्रयोग सबसे ज्यादा आचमन करने के लिए होता है. गंगाजल इसलिए खरीदा जाता है कि वह घर में रखा जा सके. अगर ऐसे में वह गंगाजल पीने योग्य नहीं है तो फिर ऐसे प्रोजेक्ट को बंद किया जाना चाहिए या फिर ऐसा गंगाजल उपलब्ध कराना चाहिए जो पीने लायक हो. वहीं, डाक विभाग के अधिकारियों भी इस मसले पर हैरान हैं. क्योंकि, उनकी नजर भी कभी बोतल के उस स्टिकर पर नहीं पड़ी जहां लिखा हुआ है नोट फॉर ड्रिंकिंग. सीनियर पोस्ट मास्टर मंगल पाटिल का कहना है कि लोगों में गंगाजल की मांग है. सावन के महीने में सबसे ज्यादा गंगाजल की बोतल बिकती है. वे भी इस संबंध में जानकारी जुटाएंगे कि गंगाजल की बोतल पर यह संदेश क्यों लिखा गया है ?