दैनिक भास्कर: इंदौर: Tuesday, May 07, 2013.
अपने
एक अफसर को सूचना के अधिकार अधिनियम (आरटीआई एक्ट) की जानकारी नहीं होने का
खामियाजाएग्रीकल्चर कॉलेज को भुगतना पड़ा। निर्धारित अवधि बीतने के कारण कॉलेज को
आवेदक को 20 हजार पन्नों की जानकारी मुफ्त में देना पड़ी। इसके लिए उसने 40 हजार
रु. खर्च किए। इस गलती पर कॉलेज के डीन ने अधिकारी को नोटिस जारी कर पूछा है कि
क्यों न 40 हजार रु. का यह खर्च आपसे वसूला जाए?
धागा
फैक्टरी में मेंटेनेंस ऑफिसर दुर्गेश दुबे ने एग्रीकल्चर कॉलेज से 20 दिसंबर 2012
को कुछ जानकारी मांगी थी। निर्धारित 30 दिन में जानकारी नहीं मिली तो उन्होंने लोक
सूचना अधिकारी को आवेदन दिया। वहां से भी निराशा मिली तो दुबे ने ग्वालियर स्थित
कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति व लोक सूचना अधिकारी प्रथम को आवेदन दिया। इस
प्रक्रिया के बाद एग्रीकल्चर कॉलेज ने दुबे को 21 फरवरी 2013 को पत्र लिखकर २०
हजार पन्नों की जानकारी के लिए 40 हजार रु. (दो रुपए प्रति पेज के हिसाब से) जमा
कराने के लिए कहा।
दुबे
ने नियमों का हवाला देते हुए जवाब दिया कि आपने निर्धारित 30 दिन में जानकारी नहीं
दी, इसलिए मुझे जानकारी मुफ्त में दी जाए। इसके बाद फाइल फिर
ग्वालियर तक गई, जहां से कठोर आदेश मिलने के बाद कॉलेज ने बिना शुल्क लिए २०
हजार पन्नों की कॉपी दुबे को दी। उधर, कॉलेज के डीन ओ. एन. राजपूत ने
'भास्करÓ को
बताया हमने आहरण संवितरण अधिकारी (डीडीओ)
आर. के. शर्मा को नोटिस देकर पूछा है कि क्यों न इस 40 हजार रु. की वसूली आपसे की
जाए? कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर को भी इसकी जानकारी भेजी है।
वहां से निर्देश मिलने के बाद अगली कार्रवाई की जाएगी।
मुझे
नियमों की जानकारी नहीं थी ;
॥मेरे
पास जानकारी देने के संबंध में पत्र आया था, लेकिन मुझे अधिनियम के नियमों
की जानकारी नहीं थी। पत्र मिलने के वक्त मेरे पास अकाउंट सेक्शन सहित अन्य बहुत से
कार्य भी थे। चूंकि मुझसे गलती हुई है, इसलिए जो रिकवरी निकलेगी वह तो
मुझे भरनी होगी। हालांकि यह काम मेरे अकेले का नहीं था। इसमें अन्य लोगों को सहयोग
देना था।