Thursday, October 16, 2025

ब्यावर बनेगा आरटीआई सिटी, अब डीपीडीपीए के खिलाफ संघर्ष का बिगुल: रॉय

Dainik Bhaskar: Rajasthan: Thursday, 16th October 2025.
अजमेर/ ब्यावर
| ब्यावर की जिस धरती से 1990 में सूचना के अधिकार आंदोलन का बिगुल बजा था वहीं से रविवार को केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट (डीपीडीपीए)-2023 के खिलाफ भी नई आवाज बुलंद हुई। ब्यावर के नरबदखेड़ा में आयोजित आरटीआई मेले सूचना के अधिकार की ऐतिहासिक यात्रा को याद करते हुए और आने वाली पीढ़ियों के लिए इसे सहेजने के उद्देश्य से ब्यावर में बनने वाले सूचना का अधिकार संग्रहालय के अवसर पर वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय ने कहा कि डीपीडीपीए के खिलाफ भी आंदोलन की नई शुरुआत यहीं से होगी। डीपीडीपीए के जरिए सरकार ने सूचना के अधिकार कानून में जो संशोधन किए हैं, उन्हें हर हाल में वापस लिया जाना चाहिए। पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एपी शाह ने कहा कि डीपीडीपीए आरटीआई कानून को कमजोर करने का प्रयास है। हमें याद रखना होगा कि सत्ता जनता की है और हमें इस चाबी को हर हाल में अपने पास रखना होगा।
देश के प्रथम मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह ने कहा कि सूचना के अधिकार ने देश में सत्ता और नागरिकों के संबंधों को बदल दिया है। निखिल डे ने कहा कि हम पारदर्शिता के लिए लंबी लड़ाई लड़कर सूचना का अधिकार लेकर आए हैं। अब हर हालत में सत्ता प्रतिष्ठान से जवाबदेही लेकर रहेंगे। वरिष्ठ पत्रकार राम प्रसाद कुमावत ने कहा कि ब्यावर को आरटीआई सिटी के रूप में पहचान दिलाने का यह सही समय है। पीयूसीएल की राष्ट्रीय अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव ने कहा कि डीपीडीपीए कानून के जरिए जनता की इस ताकत को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है, लेकिन हम यह अधिकार छिनने नहीं देंगे।
सोशल अकाउंटेबिलिटी फोरम फॉर एक्शन एंड रिसर्च की निदेशक रक्षित स्वामी ने कहा कि ब्यावर की यह पहल आने वाले समय में पारदर्शी और जवाबदेह शासन की नई दिशा तय करेगी। इस अवसर पर विभिन्न सामाजिक संगठनों, सूचना कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और नागरिकों ने भी एक स्वर में कहा कि सूचना का अधिकार को किसी भी सूरत में कमजोर नहीं होने दिया जाएगा।
यहां के लोगों ने नया अधिकार दिलवाया: निखिल डे
आरटीआई आंदोलन को लेकर मजदूर किसान शक्ति संगठन के साथी सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे से भास्कर ने विशेष बातचीत कर उनके अनुभव और भविष्य की योजनाओं पर चर्चा की।
Q. जब आप लोगों ने आंदोलन शुरू किया था तब उम्मीद थी कि कामयाब होंगे?
A. जब हम लड़े तब लोग कहते थे कि कुछ नहीं मिलेगा, लेकिन मजदूर- किसान वाली जनता ने दस साल लड़ाई लड़ी। हमें आरटीआई का कानून मिला। 4 किलो अनाज और 5 दिन का समय लोगों ने आंदोलन के लिए दिया। आज भी महिलाएं आंदोलन में अनाज लेकर पहुंची तो आंदोलन जीवंत हो उठा।
Q. इस तरह का कानून बने इस तरह का विचार कैसे आया?
A. मनरेगा में हो रहे भ्रष्टाचार से श्रमिक परेशान थे। मस्टररोल में 100 नाम दर्ज होते थे। काम 40 करते, मजदूरी आधी मिलती। आरटीआई लागू हुई तो चोरी पकड़ी गई।
Q. ब्यावर अब आरटीआई आंदोलन से कैसे कनेक्ट होगा?
A. ब्यावर देशभर में आरटीआई सिटी के रूप में जाना जाएगा। यह ब्यावर के इमोशन के साथ जुड़ाव है। यहां के लोगों ने नया अधिकार दिलवाया। इससे बड़े बदलाव हुए हैं।
Q. यहां किस तरह का म्यूजियम बनेगा, लोग यहां क्या देख सकेंगे?
A. यहां सवा 6 बीघा में बनने वाले आरटीआई म्यूजियम में आरटीआई की जीवंत कहानियां, संघर्ष की गाथाएं होंगी। देशभर से यहां आने वाले लोग आज आरटीआई कैसे काम कर रही है, क्या बदलाव होना चाहिए यह सब जान सकेंगे। निर्माण शुरू हो चुका है।
सूचना का अधिकार संग्रहालय संघर्ष का प्रतीक
सूचना का अधिकार संग्रहालय का निर्माण इस आंदोलन की स्मृतियों, दस्तावेज, पोस्टरों, गीतों और जनसंघर्ष की कहानियों को सहेजने के लिए किया जा रहा है, ताकि आने वाली पीढ़ियां यह समझ सकें कि जनता ने अपने अधिकारों के लिए किस तरह लड़ाई लड़ी। मेले में भाग देश के विभिन्न जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता एवं पत्रकारों ने सूचना अधिकार मिले में भाग लिया और इस मेले को सशक्त किया। मेले के दौरान 15 विभिन्न विषयों पर कार्यशालाएं आयोजित की गईं। इस दौरान सांस्कृतिक सत्रों में “मैं नहीं मांगा” और “जानने का हक” जैसे जनगीतों ने उपस्थित लोगों को गहराई से प्रभावित किया।
ब्यावर। नरबदखेड़ा में आरटीआई मेले के दौरान संबोधित करतीं अरुणा रॉय।