Live Law: Delhi: Sunday, 31 August 2025.
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) का उद्देश्य सरकारी कामकाज में transparency (पारदर्शिता) और accountability (जवाबदेही) लाना है। इसके लिए कानून ने Central Information Commission (CIC) और राज्य सूचना आयोगों की स्थापना की। इन आयोगों का काम अपीलें सुनना, शिकायतें निपटाना और यह सुनिश्चित करना है कि जनता को जानकारी आसानी से मिल सके।
लेकिन एक बड़ा सवाल यह रहा है कि क्या CIC को अपने आंतरिक कामकाज (internal functioning) को संगठित करने का पूरा अधिकार है? खासकर, क्या वह अपनी पीठें (Benches) बना सकता है और Regulations (विनियम) जारी कर सकता है? यही सवाल Central Information Commission बनाम DDA व अन्य (2024) मामले में सुप्रीम कोर्ट के सामने आया।
RTI Act का वैधानिक ढांचा (Statutory Framework under RTI Act)
RTI Act की धारा 12 के अंतर्गत CIC का
गठन किया गया है। इसमें एक Chief Information
Commissioner और अधिकतम दस Information Commissioners हो सकते हैं। धारा 12(4) CIC को अपने कामकाज की general superintendence, direction and management (सामान्य पर्यवेक्षण, दिशा
और प्रबंधन) का अधिकार देती है।
यही शब्द इस मामले का केंद्र बने। क्या यह व्यापक शब्द CIC को यह शक्ति देते हैं कि वह Benches बना सके और नियम (Regulations) जारी कर सके, या फिर वह केवल उन्हीं शक्तियों तक सीमित है जो अधिनियम में स्पष्ट रूप से लिखी गई हैं?
दिल्ली हाईकोर्ट का
संकीर्ण दृष्टिकोण (Restrictive
Interpretation of Delhi High Court)
दिल्ली हाईकोर्ट ने CIC द्वारा
बनाए गए 2007 के Regulations को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा
कि RTI Act में कहीं भी CIC को Benches बनाने
का अधिकार नहीं दिया गया है। साथ ही, आयोग अपने अधिकार किसी
गैर-सदस्य समिति (Committee of non-members) को नहीं सौंप सकता।
हाई कोर्ट का मानना था कि चूंकि संसद ने अधिनियम में स्पष्ट रूप से Bench बनाने की अनुमति नहीं दी है, इसलिए CIC अपने आप यह शक्ति नहीं मान सकता।
सुप्रीम कोर्ट का उद्देश्यपूर्ण दृष्टिकोण (Purposive Approach of Supreme Court)
सुप्रीम कोर्ट ने हाई
कोर्ट की इस संकीर्ण व्याख्या (restrictive
interpretation) से
असहमति जताई। कोर्ट ने कहा कि ऐसे निकायों (statutory bodies) की स्वायत्तता (autonomy) और
स्वतंत्रता उनकी प्रभावी कार्यप्रणाली के लिए ज़रूरी है। यदि उनके अधिकारों को
बहुत सीमित कर दिया जाए तो वे अपना उद्देश्य पूरा नहीं कर पाएंगे।
कोर्ट ने माना कि धारा 12(4) में दिया गया “superintendence, direction and management” का अधिकार व्यापक है। इसमें CIC को यह शक्ति भी शामिल है कि वह अपने कामकाज को व्यवस्थित करने के लिए Benches बनाए और आवश्यक Regulations जारी करे।
संवैधानिक व्याख्या पर आधारित दृष्टांत (Reliance on Constitutional Jurisprudence)
सुप्रीम कोर्ट ने
संविधान के अनुच्छेद 324 का उदाहरण दिया, जो
चुनाव आयोग को “superintendence, direction and control” का अधिकार देता है।
प्रशासनिक निकायों की स्वायत्तता (Autonomy of Administrative Bodies)
कोर्ट ने ज़ोर दिया कि CIC जैसे
निकायों को स्वतंत्र रूप से काम करने देना चाहिए। यदि उनके आंतरिक प्रबंधन (internal management) में
बाहरी दखल (external interference) होगा तो उनकी कार्यक्षमता
प्रभावित होगी।
CIC हर साल लगभग 20,000 मामलों से निपटता है। यदि सभी मामलों को पूरा आयोग एक साथ सुनेगा तो प्रक्रिया बोझिल और अप्रभावी हो जाएगी। इसलिए Benches बनाना व्यावहारिक आवश्यकता (practical necessity) है।
नामकरण का विवाद: Regulations या Circulars? (The Question of Nomenclature)
एक आपत्ति यह थी कि CIC ने
अपने आदेशों को “Regulations” नाम दिया, जिससे यह प्रतीत होता है कि वह
कोई नया कानून बना रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे केवल शब्दों का खेल (semantics) बताया।
कोर्ट ने कहा कि चाहे इन्हें Regulations कहें, Circulars कहें या By-laws—उनका उद्देश्य आंतरिक कामकाज को व्यवस्थित करना है। इसलिए केवल नाम के आधार पर इन्हें अवैध नहीं कहा जा सकता।
उद्देश्यपूर्ण व्याख्या का सिद्धांत (Principle of Purposive Interpretation)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि
RTI Act का उद्देश्य है—transparency और accountability।
इसलिए अधिनियम की व्याख्या ऐसी होनी चाहिए जो इसके उद्देश्य को पूरा करे। संकीर्ण
व्याख्या (restrictive reading) अधिनियम को निष्प्रभावी बना
देती।
उद्देश्यपूर्ण व्याख्या (purposive interpretation) का मतलब है कि CIC को ऐसे सभी कदम उठाने की अनुमति हो जो इसके सुचारू संचालन और जनता को समय पर जानकारी उपलब्ध कराने के लिए आवश्यक हैं।
सुप्रीम कोर्ट का निष्कर्ष (Court's Conclusion)
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली
हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और कहा:
यह निर्णय कई कारणों से
महत्वपूर्ण है। पहला, इसने स्पष्ट किया कि CIC के
पास आंतरिक प्रबंधन के लिए व्यापक शक्तियाँ हैं। दूसरा, इसने
उद्देश्यपूर्ण व्याख्या के सिद्धांत को मज़बूत किया जिससे जनता के सूचना के अधिकार
की रक्षा होती है। तीसरा, इसने यह सिद्धांत पुख्ता किया
कि प्रशासनिक निकायों को अपने कामकाज में स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।
अब CIC स्वतंत्र रूप से Benches बना सकता है, मामलों का तेज़ी से निपटारा कर सकता है और पारदर्शिता व जवाबदेही सुनिश्चित कर सकता है।
Central Information Commission बनाम DDA व अन्य (2024) का निर्णय यह स्थापित करता है कि CIC को Benches बनाने और Regulations जारी करने का अधिकार है, भले ही अधिनियम में इसका स्पष्ट उल्लेख न हो। सुप्रीम कोर्ट ने उद्देश्यपूर्ण व्याख्या, प्रशासनिक निकायों की स्वायत्तता और संवैधानिक दृष्टांतों (precedents) के आधार पर यह निर्णय दिया।
इससे CIC की भूमिका मज़बूत हुई है और यह सुनिश्चित हुआ है कि सूचना का अधिकार अधिनियम पूरी तरह से लागू हो सके और जनता को पारदर्शिता और जवाबदेही का वास्तविक लाभ मिले।
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) का उद्देश्य सरकारी कामकाज में transparency (पारदर्शिता) और accountability (जवाबदेही) लाना है। इसके लिए कानून ने Central Information Commission (CIC) और राज्य सूचना आयोगों की स्थापना की। इन आयोगों का काम अपीलें सुनना, शिकायतें निपटाना और यह सुनिश्चित करना है कि जनता को जानकारी आसानी से मिल सके।
लेकिन एक बड़ा सवाल यह रहा है कि क्या CIC को अपने आंतरिक कामकाज (internal functioning) को संगठित करने का पूरा अधिकार है? खासकर, क्या वह अपनी पीठें (Benches) बना सकता है और Regulations (विनियम) जारी कर सकता है? यही सवाल Central Information Commission बनाम DDA व अन्य (2024) मामले में सुप्रीम कोर्ट के सामने आया।
RTI Act का वैधानिक ढांचा (Statutory Framework under RTI Act)
यही शब्द इस मामले का केंद्र बने। क्या यह व्यापक शब्द CIC को यह शक्ति देते हैं कि वह Benches बना सके और नियम (Regulations) जारी कर सके, या फिर वह केवल उन्हीं शक्तियों तक सीमित है जो अधिनियम में स्पष्ट रूप से लिखी गई हैं?
हाई कोर्ट का मानना था कि चूंकि संसद ने अधिनियम में स्पष्ट रूप से Bench बनाने की अनुमति नहीं दी है, इसलिए CIC अपने आप यह शक्ति नहीं मान सकता।
सुप्रीम कोर्ट का उद्देश्यपूर्ण दृष्टिकोण (Purposive Approach of Supreme Court)
कोर्ट ने माना कि धारा 12(4) में दिया गया “superintendence, direction and management” का अधिकार व्यापक है। इसमें CIC को यह शक्ति भी शामिल है कि वह अपने कामकाज को व्यवस्थित करने के लिए Benches बनाए और आवश्यक Regulations जारी करे।
संवैधानिक व्याख्या पर आधारित दृष्टांत (Reliance on Constitutional Jurisprudence)
- Election Commission of India बनाम Ashok Kumar (2000) में कोर्ट ने कहा कि ये शब्द
बहुत व्यापक हैं और चुनाव आयोग को वह सब करने की शक्ति देते हैं जो चुनाव कराना
सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।
- Union of India बनाम
Association for Democratic Reforms (2002) में भी यही सिद्धांत अपनाया
गया कि आयोग ऐसे क्षेत्रों में भी आदेश दे सकता है जहाँ कानून चुप है।
प्रशासनिक निकायों की स्वायत्तता (Autonomy of Administrative Bodies)
CIC हर साल लगभग 20,000 मामलों से निपटता है। यदि सभी मामलों को पूरा आयोग एक साथ सुनेगा तो प्रक्रिया बोझिल और अप्रभावी हो जाएगी। इसलिए Benches बनाना व्यावहारिक आवश्यकता (practical necessity) है।
नामकरण का विवाद: Regulations या Circulars? (The Question of Nomenclature)
कोर्ट ने कहा कि चाहे इन्हें Regulations कहें, Circulars कहें या By-laws—उनका उद्देश्य आंतरिक कामकाज को व्यवस्थित करना है। इसलिए केवल नाम के आधार पर इन्हें अवैध नहीं कहा जा सकता।
उद्देश्यपूर्ण व्याख्या का सिद्धांत (Principle of Purposive Interpretation)
उद्देश्यपूर्ण व्याख्या (purposive interpretation) का मतलब है कि CIC को ऐसे सभी कदम उठाने की अनुमति हो जो इसके सुचारू संचालन और जनता को समय पर जानकारी उपलब्ध कराने के लिए आवश्यक हैं।
सुप्रीम कोर्ट का निष्कर्ष (Court's Conclusion)
- CIC को
Benches बनाने का अधिकार है।
- CIC आंतरिक
कामकाज के लिए Regulations जारी कर सकता है।
- धारा 12(4) के
“superintendence, direction and management” शब्दों में ये शक्तियाँ
अंतर्निहित (inherent) हैं।
- CIC की
स्वायत्तता (autonomy) आवश्यक है ताकि वह पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित
कर सके।
अब CIC स्वतंत्र रूप से Benches बना सकता है, मामलों का तेज़ी से निपटारा कर सकता है और पारदर्शिता व जवाबदेही सुनिश्चित कर सकता है।
Central Information Commission बनाम DDA व अन्य (2024) का निर्णय यह स्थापित करता है कि CIC को Benches बनाने और Regulations जारी करने का अधिकार है, भले ही अधिनियम में इसका स्पष्ट उल्लेख न हो। सुप्रीम कोर्ट ने उद्देश्यपूर्ण व्याख्या, प्रशासनिक निकायों की स्वायत्तता और संवैधानिक दृष्टांतों (precedents) के आधार पर यह निर्णय दिया।
इससे CIC की भूमिका मज़बूत हुई है और यह सुनिश्चित हुआ है कि सूचना का अधिकार अधिनियम पूरी तरह से लागू हो सके और जनता को पारदर्शिता और जवाबदेही का वास्तविक लाभ मिले।