Live Law: National: Wednesday, 2nd July 2025.
किशन चंद जैन बनाम भारत संघ (2023) के ऐतिहासिक फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने जानकारी के अधिकार अधिनियम, 2005 (Right to Information Act, 2005 - RTI Act) के एक बेहद अहम मुद्दे पर विचार किया क्या बिना जवाबदेही (Accountability) के यह कानून अपने मकसद में सफल हो सकता है?
इस मामले में कोर्ट ने
किसी एक व्यक्ति की शिकायत या प्रक्रिया की गलती पर ध्यान नहीं दिया, बल्कि
सार्वजनिक संस्थाओं द्वारा RTI Act की धारा 4 (Section 4) के
पालन की समग्र स्थिति पर विचार किया।
इस निर्णय ने यह स्पष्ट किया कि नागरिकों को सूचना का अधिकार तभी प्रभावी रूप से मिल सकता है जब सार्वजनिक संस्थाएं अपनी कानूनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से निभाएं। यह लेख इसी न्यायिक फैसले की मुख्य बातों को सरल भाषा में समझाता है।
धारा 4 का केंद्रीय महत्व (Central Importance of Section 4)
RTI Act की धारा 3 (Section 3) नागरिकों को जानकारी पाने का
अधिकार देती है। लेकिन यह अधिकार तभी व्यवहार में आता है जब सार्वजनिक संस्थाएं
धारा 4 में दिए गए अपने कर्तव्यों (Duties) को
निभाएं।
धारा 4 में कहा गया है कि हर सार्वजनिक संस्था को अपनी सारी जानकारी व्यवस्थित तरीके से संजो कर रखनी होगी, उसे कंप्यूटर पर अपलोड करना होगा और समय-समय पर जनता के लिए खुद से (Suo Motu) प्रकाशित करनी होगी। इसमें संस्थान की संरचना (Structure), कार्य (Functions), बजट (Budget), निर्णय प्रक्रिया (Decision-Making), वेतन और सब्सिडी की जानकारी शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि Section 3 में दिए गए अधिकार की असली ताकत Section 4 की जिम्मेदारी पर टिकी है। जब तक सरकारी संस्थाएं खुद से सूचना प्रकाशित नहीं करेंगी, तब तक यह अधिकार सिर्फ कागज़ों पर रहेगा।
पारदर्शिता को मज़बूत करने वाले पिछले फ़ैसले (Judicial Precedents Emphasizing Transparency)
कोर्ट ने पहले के कई अहम फ़ैसलों का ज़िक्र किया जिनमें पारदर्शिता (Transparency) और जवाबदेही (Accountability) को लोकतंत्र की नींव माना गया है।
Institute of Chartered Accountants of India v. Shaunak H. Satya (2011) में कोर्ट ने कहा था कि RTI Act के तहत दो तरह की जानकारियां होती हैं: पहली, जो पारदर्शिता बढ़ाती हैं और भ्रष्टाचार रोकती हैं, और दूसरी, जो संवेदनशील या सीमित होती हैं। पहली तरह की जानकारियों को सार्वजनिक संस्थाओं को बिना मांगे ही जनता तक पहुंचाना होता है।
इसी तरह Supreme Court v. Subhash Chandra Agarwal (2020) में कोर्ट ने यह दोहराया कि सूचना देना संविधानिक पदों पर बैठे लोगों के लिए भी ज़रूरी है।
धारा 25 के तहत निगरानी और रिपोर्टिंग की व्यवस्था (Monitoring and Reporting Under Section 25)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि RTI Act की धारा 25 एक मजबूत जवाबदेही प्रणाली बनाती है। इसके तहत केंद्र और राज्य सूचना आयोग (Information Commissions) हर साल एक रिपोर्ट बनाते हैं जिसमें RTI Act के पालन की स्थिति का ब्यौरा होता है। यह रिपोर्ट संसद या विधानसभाओं में रखी जाती है।
इसके अलावा, Section 25(5) के तहत आयोगों को यह अधिकार है कि यदि कोई संस्था कानून के अनुसार काम नहीं कर रही, तो वे उसे सुधार के लिए दिशा-निर्देश दे सकते हैं।
इस तरह, यह व्यवस्था नागरिकों के अधिकार को संसद की निगरानी और सरकारी जवाबदेही से जोड़ती है। यह लोकतंत्र की एक सशक्त कड़ी है।
प्रशासनिक दिशा-निर्देश और मंत्रालय की भूमिका (Administrative Implementation and Departmental Guidelines)
कोर्ट ने देखा कि 2011
से अब तक कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT) ने कई Office Memorandums (O.M.s) जारी किए हैं ताकि Section 4 का पालन सुनिश्चित किया जा
सके। विशेष रूप से 7 नवम्बर 2019
का O.M. महत्त्वपूर्ण था,
जिसमें हर मंत्रालय को
सालाना तीसरे पक्ष (Third-Party) से पारदर्शिता ऑडिट करवाने की
बात कही गई थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि केवल 33% संस्थाओं ने ही यह ऑडिट
करवाया है और उसमें भी कई संस्थाएं न्यूनतम मानकों पर खरी नहीं उतरीं। कोर्ट ने
माना कि यह गंभीर समस्या है क्योंकि इससे RTI का मकसद विफल हो सकता है।
लोक जवाबदेही की भूमिका (Public Accountability as the Heart of RTI Regime)
कोर्ट ने जवाबदेही (Accountability) के मूल सिद्धांतों को स्पष्ट किया।
Vijay Rajmohan v. CBI (2023) में कहा गया था कि जवाबदेही के तीन पहलू होते हैं:
इस निर्णय में कोर्ट ने कहा कि Section 4 कोई सामान्य प्रशासनिक काम नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र की आत्मा है। अगर सरकारें अपनी जानकारी खुद से सार्वजनिक करेंगी, तभी जनता उन्हें जवाबदेह बना सकती है।
सूचना आयोगों की भूमिका (Role of Information Commissions)
RTI Act के अध्याय III और IV में
केंद्रीय और राज्य सूचना आयोगों की स्थापना की गई है। ये आयोग Section 18
के तहत शिकायतों की जांच कर सकते हैं और सुधार के लिए कदम उठा सकते हैं।
कोर्ट ने कहा कि आयोगों को सिर्फ शिकायतें सुनने तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उन्हें Section 4 के पालन की निगरानी सक्रिय रूप से करनी चाहिए। वे Third-Party ऑडिट की समीक्षा करें, दिशा-निर्देश जारी करें और रिपोर्टिंग प्रक्रिया को मज़बूती से लागू करवाएं।
इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने सभी आयोगों को आदेश दिया कि वे 7.11.2019 के निर्देशों सहित RTI Act की धारा 4 के सभी प्रावधानों का सख्ती से पालन करवाएं।
किशन चंद जैन बनाम भारत संघ का यह फ़ैसला RTI Act को एक कानूनी अधिकार के बजाय एक लोकतांत्रिक साधन के रूप में प्रस्तुत करता है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि RTI की असली ताकत जनता की निगरानी और सरकारी संस्थाओं की जवाबदेही में है।
इस फ़ैसले ने दिखाया कि पारदर्शिता केवल सूचना मांगने से नहीं आती बल्कि तब आती है जब सरकारें खुद से हर जानकारी साझा करती हैं। RTI Act तभी सफल होगा जब सरकारें अपनी जिम्मेदारी निभाएं, आयोग सक्रिय रहें, और जनता अपने अधिकारों को समझे।
यह निर्णय सिर्फ एक याचिका का समाधान नहीं, बल्कि यह एक संवैधानिक चेतावनी है सरकारें जवाबदेह बनें, नहीं तो लोकतंत्र खोखला हो जाएगा। RTI Act हमें यही अवसर देता है कि हम सरकार से सवाल पूछें, जवाब मांगें और सत्ता को जनता के प्रति जवाबदेह बनाएं।
किशन चंद जैन बनाम भारत संघ (2023) के ऐतिहासिक फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने जानकारी के अधिकार अधिनियम, 2005 (Right to Information Act, 2005 - RTI Act) के एक बेहद अहम मुद्दे पर विचार किया क्या बिना जवाबदेही (Accountability) के यह कानून अपने मकसद में सफल हो सकता है?
इस निर्णय ने यह स्पष्ट किया कि नागरिकों को सूचना का अधिकार तभी प्रभावी रूप से मिल सकता है जब सार्वजनिक संस्थाएं अपनी कानूनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से निभाएं। यह लेख इसी न्यायिक फैसले की मुख्य बातों को सरल भाषा में समझाता है।
धारा 4 का केंद्रीय महत्व (Central Importance of Section 4)
धारा 4 में कहा गया है कि हर सार्वजनिक संस्था को अपनी सारी जानकारी व्यवस्थित तरीके से संजो कर रखनी होगी, उसे कंप्यूटर पर अपलोड करना होगा और समय-समय पर जनता के लिए खुद से (Suo Motu) प्रकाशित करनी होगी। इसमें संस्थान की संरचना (Structure), कार्य (Functions), बजट (Budget), निर्णय प्रक्रिया (Decision-Making), वेतन और सब्सिडी की जानकारी शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि Section 3 में दिए गए अधिकार की असली ताकत Section 4 की जिम्मेदारी पर टिकी है। जब तक सरकारी संस्थाएं खुद से सूचना प्रकाशित नहीं करेंगी, तब तक यह अधिकार सिर्फ कागज़ों पर रहेगा।
पारदर्शिता को मज़बूत करने वाले पिछले फ़ैसले (Judicial Precedents Emphasizing Transparency)
कोर्ट ने पहले के कई अहम फ़ैसलों का ज़िक्र किया जिनमें पारदर्शिता (Transparency) और जवाबदेही (Accountability) को लोकतंत्र की नींव माना गया है।
Institute of Chartered Accountants of India v. Shaunak H. Satya (2011) में कोर्ट ने कहा था कि RTI Act के तहत दो तरह की जानकारियां होती हैं: पहली, जो पारदर्शिता बढ़ाती हैं और भ्रष्टाचार रोकती हैं, और दूसरी, जो संवेदनशील या सीमित होती हैं। पहली तरह की जानकारियों को सार्वजनिक संस्थाओं को बिना मांगे ही जनता तक पहुंचाना होता है।
इसी तरह Supreme Court v. Subhash Chandra Agarwal (2020) में कोर्ट ने यह दोहराया कि सूचना देना संविधानिक पदों पर बैठे लोगों के लिए भी ज़रूरी है।
धारा 25 के तहत निगरानी और रिपोर्टिंग की व्यवस्था (Monitoring and Reporting Under Section 25)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि RTI Act की धारा 25 एक मजबूत जवाबदेही प्रणाली बनाती है। इसके तहत केंद्र और राज्य सूचना आयोग (Information Commissions) हर साल एक रिपोर्ट बनाते हैं जिसमें RTI Act के पालन की स्थिति का ब्यौरा होता है। यह रिपोर्ट संसद या विधानसभाओं में रखी जाती है।
इसके अलावा, Section 25(5) के तहत आयोगों को यह अधिकार है कि यदि कोई संस्था कानून के अनुसार काम नहीं कर रही, तो वे उसे सुधार के लिए दिशा-निर्देश दे सकते हैं।
इस तरह, यह व्यवस्था नागरिकों के अधिकार को संसद की निगरानी और सरकारी जवाबदेही से जोड़ती है। यह लोकतंत्र की एक सशक्त कड़ी है।
प्रशासनिक दिशा-निर्देश और मंत्रालय की भूमिका (Administrative Implementation and Departmental Guidelines)
लोक जवाबदेही की भूमिका (Public Accountability as the Heart of RTI Regime)
कोर्ट ने जवाबदेही (Accountability) के मूल सिद्धांतों को स्पष्ट किया।
Vijay Rajmohan v. CBI (2023) में कहा गया था कि जवाबदेही के तीन पहलू होते हैं:
- जिम्मेदारी
(Responsibility) – यानी कौन क्या करेगा
- उत्तरदायित्व
(Answerability) – यानी निर्णयों का कारण बताना
- लागू
करने की क्षमता (Enforceability) – यानी गलती होने पर सुधारात्मक कदम उठाना
इस निर्णय में कोर्ट ने कहा कि Section 4 कोई सामान्य प्रशासनिक काम नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र की आत्मा है। अगर सरकारें अपनी जानकारी खुद से सार्वजनिक करेंगी, तभी जनता उन्हें जवाबदेह बना सकती है।
सूचना आयोगों की भूमिका (Role of Information Commissions)
कोर्ट ने कहा कि आयोगों को सिर्फ शिकायतें सुनने तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उन्हें Section 4 के पालन की निगरानी सक्रिय रूप से करनी चाहिए। वे Third-Party ऑडिट की समीक्षा करें, दिशा-निर्देश जारी करें और रिपोर्टिंग प्रक्रिया को मज़बूती से लागू करवाएं।
इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने सभी आयोगों को आदेश दिया कि वे 7.11.2019 के निर्देशों सहित RTI Act की धारा 4 के सभी प्रावधानों का सख्ती से पालन करवाएं।
किशन चंद जैन बनाम भारत संघ का यह फ़ैसला RTI Act को एक कानूनी अधिकार के बजाय एक लोकतांत्रिक साधन के रूप में प्रस्तुत करता है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि RTI की असली ताकत जनता की निगरानी और सरकारी संस्थाओं की जवाबदेही में है।
इस फ़ैसले ने दिखाया कि पारदर्शिता केवल सूचना मांगने से नहीं आती बल्कि तब आती है जब सरकारें खुद से हर जानकारी साझा करती हैं। RTI Act तभी सफल होगा जब सरकारें अपनी जिम्मेदारी निभाएं, आयोग सक्रिय रहें, और जनता अपने अधिकारों को समझे।
यह निर्णय सिर्फ एक याचिका का समाधान नहीं, बल्कि यह एक संवैधानिक चेतावनी है सरकारें जवाबदेह बनें, नहीं तो लोकतंत्र खोखला हो जाएगा। RTI Act हमें यही अवसर देता है कि हम सरकार से सवाल पूछें, जवाब मांगें और सत्ता को जनता के प्रति जवाबदेह बनाएं।