Live Law: National: Friday, 20th June 2025.
इस एक्ट की धारा 11 इस प्रकार है-
पर व्यक्ति सूचना - (1) जहाँ, यथास्थिति, किसी केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी का, इस अधिनियम के अधीन किए गए अनुरोध पर कोई ऐसी सूचना या अभिलेख या उसके किसी भाग को प्रकट करने का आशय है, जो किसी पर व्यक्ति से संबंधित है या उसके द्वारा इसका प्रदाय किया गया है और उस पर व्यक्ति द्वारा उसे गोपनीय माना गया है, वहाँ, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी अनुरोध प्राप्त होने से पांच दिन के भीतर, ऐसे पर व्यक्ति को अनुरोध की - और इस तथ्य की लिखित रूप में सूचना देगा कि, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी का उक्त सूचना या अभिलेख या उसके किसी भाग को प्रकट करने का आशय है, और इस तथ्य में कि सूचना प्रकट की जानी चाहिए या नहीं, लिखित में या मौखिक रूप से निवेदन करने के लिए पर-व्यक्ति को आमंत्रित करेगा तथा सूचना के प्रकटन के बारे में कोई विनिश्चय करते समय पर व्यक्ति के ऐसे निवेदन को ध्यान में रखा जाएगा।
परन्तु विधि द्वारा संरक्षित व्यापार या वाणिज्यिक गुप्त बातों की दशा में के सिवाय, यदि ऐसे प्रकटन में लोकहित, ऐसे पर व्यक्ति के हितों की किसी संभावित अपहानि या क्षति से अधिक महत्वपूर्ण है तो प्रकटन को अनुज्ञात किया जा सकेगा।
(2) जहाँ उपधारा (1) के अधीन, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी द्वारा पर व्यक्ति पर किसी सूचना या अभिलेख या उसके किसी भाग के बारे में किसी सूचना की तामील की जाती है, वहाँ ऐसे पर व्यक्ति को, ऐसी सूचना की प्राप्ति की तारीख से दस दिन के भीतर प्रस्तावित प्रकटन के विरुद्ध अभ्यावेदन करने का अवसर दिया जाएगा।
(3) धारा 7 में किसी बात के होते हुए भी, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी धारा 6 के अधीन अनुरोध प्राप्त होने के पश्चात् चालीस दिन के भीतर यदि पर व्यक्ति को उपधारा (2) के अधीन अभ्यावेदन करने का अवसर दे दिया गया है, तो इस बारे में विनिश्चय करेगा कि उक्त सूचना या अभिलेख या उसके भाग का प्रकटन किया जाए या नहीं और अपने विनिश्चिय की सूचना लिखित में पर व्यक्ति को देगा।
(4) उपधारा (3) के अधीन दी गई सूचना में यह कथन भी सम्मिलित होगा कि वह पर व्यक्ति, जिसे सूचना दी गई है, धारा 19 के अधीन उक्त विनिश्चय के विरुद्ध अपील करने का हकदार है।
यह अधिनियम व्यक्तियों/फर्मों/संगठनों को भी आच्छादित करता है, जो प्रत्यक्षतः अधिनियम के क्षेत्र के अन्तर्गत नहीं आते किन्तु उन्होंने संविदाओं, कारोबार संव्यवहार या सरकारी अभिकरणों (लोक प्राधिकारी) के वित्तीय संव्यवहार से सम्बन्धित उनकी सूचना में से कुछ को पेश किया है। ऐसी सूचना नागरिकों द्वारा अधिनियम के अधीन पहुँचा जा सकता है। ये व्यक्ति/फर्म/संगठन अधिनियम के अधीन पर पक्षकार की परिभाषा के अधीन आच्छादित हैं ।
इस अधिनियम के अधीन
पर-पक्षकार की परिभाषा आवेदन और सूचना के लिए आवेदक पर विचार करने वाले लोक
प्राधिकारी के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति को आच्छादित करता है, जैसा
कि नीचे दर्शित है:
प्रथम पक्षकार आवेदन या अपील पेश करने वाला व्यक्ति; द्वितीय-पक्षकार- आवेदन पर कार्यवाही करने के लिए उत्तरदायी लोक प्राधिकारी तथा पर पक्षकार अन्य लोक प्राधिकारी को शामिल करके कोई अन्य व्यक्ति या निकाय पर पक्षकार द्वारा प्रदान किये गये किन्तु लोक प्राधिकारी द्वारा धारण किये गये अभिलेख अधिनियम के अधीन सूचना की परिभाषा के अन्तर्गत शामिल किये जाते हैं और सूचना के लिए अनुरोध की विषयवस्तु हो सकते हैं। यह धारा अपेक्षा करती है कि यदि नागरिकों द्वारा मांगी गई सूचना अभिलेख से सम्बन्धित है, जो पर पक्षकार द्वारा प्रदान की गई है और उस पक्षकार द्वारा गोपनीय के रूप में नहीं मानी जाती है, तो लोक प्राधिकारी या लोक सूचना अधिकारी आवेदक को ऐसी सूचना प्रदान करने के लिए स्वतन्त्र है।
यदि सूचना पर पक्षकार द्वारा गोपनीय मानी जाती है, तो निम्नलिखित कदम लोक सूचना अधिकारी द्वारा उठाये जायेंगे :
(क) लोक सूचना अधिकारी की सूचना के लिए आवेदन की प्राप्ति के पांच दिनों के भीतर उसकी राय की ईप्सा करने वाले पर पक्षकार को लिखित नोटिस देना है कि क्या सूचना आवेदक के समक्ष प्रकट की जानी चाहिए या नहीं
(ख) पर-पक्षकार को 10 दिनों के भीतर लोक सूचना अधिकारी के समक्ष यह निवेदन करना चाहिए कि सूचना को प्रकट किया जाए या नहीं।
(ग) आवेदन की प्राप्ति के 40 दिनों के भीतर, लोक सूचना अधिकारी को विनिश्चय करना चाहिए। पर-पक्षकार से सम्बन्धित सूचना आवेदक को प्रदान की जाए या नहीं और इसके पश्चात् उसका विनिश्चय पर पक्षकार को दिया जाए।
(स) पर पक्षकार उससे सम्बन्धित सूचना को आवेदक के समक्ष प्रकट करने के लिए लोक सूचना अधिकारी के विनिश्चय के विरुद्ध अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील दाखिल कर सकता है।
लोक सूचना अधिकारी को पर-पक्षकार से सम्बन्धित सूचना की ईप्सा करने वाले आवेदन पर विचार करने में अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करना चाहिए। उसे अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करते समय मस्तिष्क में विधि द्वारा संरक्षित या व्यापार और वाणिज्यिक गोपनीयताओं, व्यक्तियों के एकान्त के उल्लंघन के संरक्षण और पर-पक्षकार के हित की क्षति को अमान्य करके लोकहित को ध्यान में रखना चाहिए।
इस धारा के अधीन सभी निजी उद्योग, बैंक या कोई अन्य फर्म, जिनका लोक प्राधिकारियों से किसी प्रकार का कारवार संव्यवहार संविदात्मक सम्बन्ध है, आच्छादित है।
नागरिक लोक प्राधिकारियों से इन फर्मों के बारे में सूचना की मांग कर सकते हैं, जो अपना अभिलेख रखते हैं।
सहकारी समिति के ग्राहकों के सम्बन्ध में सूचना ऐसी सूचना नहीं है जिसे प्राप्त किया जा सकता हो तथा सोसाइटी द्वारा अनुरक्षित किया जाता है। अतः ऐसी सूचना को जैसा कि धारा 11 में प्रावधानित किया गया है, पर पक्षकार से सम्बन्धित सूचना को प्रक्रिया का अनुसरण करने के पश्चात् प्रदान किया है।
वार्षिक गोपनीयता रिपोर्ट और अन्य सूचना जैसे परिवार का विवरण प्रकृति में व्यक्तिगत है और किसी लोक क्रियाकलाप से सम्बन्धित नहीं है और निश्चित रूप से परिणाम सरकारी सेवक की गोपनीयता के उल्लंघन में होता है।
पर पक्षकार से सम्बन्धित सूचना को ईप्सा की गयी है या प्रदान की गयी है और गोपनीय मानी गयी है, उपबन्धित प्रक्रिया का अनुसरण किया जाना चाहिए।
कोई विवाद नहीं है कि धारा 11 प्रावधान करती है कि जहाँ केन्द्रीय सार्वजनिक सूचना अधिकारी का आशय किसी सूचना या अभिलेख को प्रकट करने का है, जो पर पक्षकार से सम्बन्धित है और पर-पक्षकार द्वारा प्रदान की जाती है और उस पर पक्षकार द्वारा विश्वसनीय माना गया है, तो सम्बद्ध प्राधिकारी यह तर्क देने के लिये, कि क्या ऐसे दस्तावेज को प्रकट किया जाना चाहिये या नहीं, उसे अवसर प्रदान करते हुये अनुरोध पर ऐसे पक्षकार को सूचना देगा।
इस एक्ट की धारा 11 इस प्रकार है-
पर व्यक्ति सूचना - (1) जहाँ, यथास्थिति, किसी केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी का, इस अधिनियम के अधीन किए गए अनुरोध पर कोई ऐसी सूचना या अभिलेख या उसके किसी भाग को प्रकट करने का आशय है, जो किसी पर व्यक्ति से संबंधित है या उसके द्वारा इसका प्रदाय किया गया है और उस पर व्यक्ति द्वारा उसे गोपनीय माना गया है, वहाँ, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी अनुरोध प्राप्त होने से पांच दिन के भीतर, ऐसे पर व्यक्ति को अनुरोध की - और इस तथ्य की लिखित रूप में सूचना देगा कि, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी का उक्त सूचना या अभिलेख या उसके किसी भाग को प्रकट करने का आशय है, और इस तथ्य में कि सूचना प्रकट की जानी चाहिए या नहीं, लिखित में या मौखिक रूप से निवेदन करने के लिए पर-व्यक्ति को आमंत्रित करेगा तथा सूचना के प्रकटन के बारे में कोई विनिश्चय करते समय पर व्यक्ति के ऐसे निवेदन को ध्यान में रखा जाएगा।
परन्तु विधि द्वारा संरक्षित व्यापार या वाणिज्यिक गुप्त बातों की दशा में के सिवाय, यदि ऐसे प्रकटन में लोकहित, ऐसे पर व्यक्ति के हितों की किसी संभावित अपहानि या क्षति से अधिक महत्वपूर्ण है तो प्रकटन को अनुज्ञात किया जा सकेगा।
(2) जहाँ उपधारा (1) के अधीन, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी द्वारा पर व्यक्ति पर किसी सूचना या अभिलेख या उसके किसी भाग के बारे में किसी सूचना की तामील की जाती है, वहाँ ऐसे पर व्यक्ति को, ऐसी सूचना की प्राप्ति की तारीख से दस दिन के भीतर प्रस्तावित प्रकटन के विरुद्ध अभ्यावेदन करने का अवसर दिया जाएगा।
(3) धारा 7 में किसी बात के होते हुए भी, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी धारा 6 के अधीन अनुरोध प्राप्त होने के पश्चात् चालीस दिन के भीतर यदि पर व्यक्ति को उपधारा (2) के अधीन अभ्यावेदन करने का अवसर दे दिया गया है, तो इस बारे में विनिश्चय करेगा कि उक्त सूचना या अभिलेख या उसके भाग का प्रकटन किया जाए या नहीं और अपने विनिश्चिय की सूचना लिखित में पर व्यक्ति को देगा।
(4) उपधारा (3) के अधीन दी गई सूचना में यह कथन भी सम्मिलित होगा कि वह पर व्यक्ति, जिसे सूचना दी गई है, धारा 19 के अधीन उक्त विनिश्चय के विरुद्ध अपील करने का हकदार है।
यह अधिनियम व्यक्तियों/फर्मों/संगठनों को भी आच्छादित करता है, जो प्रत्यक्षतः अधिनियम के क्षेत्र के अन्तर्गत नहीं आते किन्तु उन्होंने संविदाओं, कारोबार संव्यवहार या सरकारी अभिकरणों (लोक प्राधिकारी) के वित्तीय संव्यवहार से सम्बन्धित उनकी सूचना में से कुछ को पेश किया है। ऐसी सूचना नागरिकों द्वारा अधिनियम के अधीन पहुँचा जा सकता है। ये व्यक्ति/फर्म/संगठन अधिनियम के अधीन पर पक्षकार की परिभाषा के अधीन आच्छादित हैं ।
प्रथम पक्षकार आवेदन या अपील पेश करने वाला व्यक्ति; द्वितीय-पक्षकार- आवेदन पर कार्यवाही करने के लिए उत्तरदायी लोक प्राधिकारी तथा पर पक्षकार अन्य लोक प्राधिकारी को शामिल करके कोई अन्य व्यक्ति या निकाय पर पक्षकार द्वारा प्रदान किये गये किन्तु लोक प्राधिकारी द्वारा धारण किये गये अभिलेख अधिनियम के अधीन सूचना की परिभाषा के अन्तर्गत शामिल किये जाते हैं और सूचना के लिए अनुरोध की विषयवस्तु हो सकते हैं। यह धारा अपेक्षा करती है कि यदि नागरिकों द्वारा मांगी गई सूचना अभिलेख से सम्बन्धित है, जो पर पक्षकार द्वारा प्रदान की गई है और उस पक्षकार द्वारा गोपनीय के रूप में नहीं मानी जाती है, तो लोक प्राधिकारी या लोक सूचना अधिकारी आवेदक को ऐसी सूचना प्रदान करने के लिए स्वतन्त्र है।
यदि सूचना पर पक्षकार द्वारा गोपनीय मानी जाती है, तो निम्नलिखित कदम लोक सूचना अधिकारी द्वारा उठाये जायेंगे :
(क) लोक सूचना अधिकारी की सूचना के लिए आवेदन की प्राप्ति के पांच दिनों के भीतर उसकी राय की ईप्सा करने वाले पर पक्षकार को लिखित नोटिस देना है कि क्या सूचना आवेदक के समक्ष प्रकट की जानी चाहिए या नहीं
(ख) पर-पक्षकार को 10 दिनों के भीतर लोक सूचना अधिकारी के समक्ष यह निवेदन करना चाहिए कि सूचना को प्रकट किया जाए या नहीं।
(ग) आवेदन की प्राप्ति के 40 दिनों के भीतर, लोक सूचना अधिकारी को विनिश्चय करना चाहिए। पर-पक्षकार से सम्बन्धित सूचना आवेदक को प्रदान की जाए या नहीं और इसके पश्चात् उसका विनिश्चय पर पक्षकार को दिया जाए।
(स) पर पक्षकार उससे सम्बन्धित सूचना को आवेदक के समक्ष प्रकट करने के लिए लोक सूचना अधिकारी के विनिश्चय के विरुद्ध अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील दाखिल कर सकता है।
लोक सूचना अधिकारी को पर-पक्षकार से सम्बन्धित सूचना की ईप्सा करने वाले आवेदन पर विचार करने में अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करना चाहिए। उसे अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करते समय मस्तिष्क में विधि द्वारा संरक्षित या व्यापार और वाणिज्यिक गोपनीयताओं, व्यक्तियों के एकान्त के उल्लंघन के संरक्षण और पर-पक्षकार के हित की क्षति को अमान्य करके लोकहित को ध्यान में रखना चाहिए।
इस धारा के अधीन सभी निजी उद्योग, बैंक या कोई अन्य फर्म, जिनका लोक प्राधिकारियों से किसी प्रकार का कारवार संव्यवहार संविदात्मक सम्बन्ध है, आच्छादित है।
नागरिक लोक प्राधिकारियों से इन फर्मों के बारे में सूचना की मांग कर सकते हैं, जो अपना अभिलेख रखते हैं।
सहकारी समिति के ग्राहकों के सम्बन्ध में सूचना ऐसी सूचना नहीं है जिसे प्राप्त किया जा सकता हो तथा सोसाइटी द्वारा अनुरक्षित किया जाता है। अतः ऐसी सूचना को जैसा कि धारा 11 में प्रावधानित किया गया है, पर पक्षकार से सम्बन्धित सूचना को प्रक्रिया का अनुसरण करने के पश्चात् प्रदान किया है।
वार्षिक गोपनीयता रिपोर्ट और अन्य सूचना जैसे परिवार का विवरण प्रकृति में व्यक्तिगत है और किसी लोक क्रियाकलाप से सम्बन्धित नहीं है और निश्चित रूप से परिणाम सरकारी सेवक की गोपनीयता के उल्लंघन में होता है।
पर पक्षकार से सम्बन्धित सूचना को ईप्सा की गयी है या प्रदान की गयी है और गोपनीय मानी गयी है, उपबन्धित प्रक्रिया का अनुसरण किया जाना चाहिए।
कोई विवाद नहीं है कि धारा 11 प्रावधान करती है कि जहाँ केन्द्रीय सार्वजनिक सूचना अधिकारी का आशय किसी सूचना या अभिलेख को प्रकट करने का है, जो पर पक्षकार से सम्बन्धित है और पर-पक्षकार द्वारा प्रदान की जाती है और उस पर पक्षकार द्वारा विश्वसनीय माना गया है, तो सम्बद्ध प्राधिकारी यह तर्क देने के लिये, कि क्या ऐसे दस्तावेज को प्रकट किया जाना चाहिये या नहीं, उसे अवसर प्रदान करते हुये अनुरोध पर ऐसे पक्षकार को सूचना देगा।