Friday, March 07, 2025

‘सरकार के एजेंट के रूप में काम कर रहे’… MP के सूचना आयुक्त को हाई कोर्ट ने फटकारा, लगाया 40000 का जुर्माना: शिव चौबे

TV9 Bharatvarsh: Jabalpur: Friday, 7Th March 2025.
मध्य प्रदेश के जबलपुर हाई कोर्ट ने राज्य सूचना आयुक्त के एक विवादास्पद आदेश को रद्द करते हुए हाई कोर्ट जस्टिस विवेक कुमार अग्रवाल की एकलपीठ ने
40,000 रुपए का जुर्माना लगाया है. हाई कोर्ट ने माना कि सूचना आयुक्त सरकार के एजेंट के रूप में कार्य कर रहे हैं, जिससे पारदर्शिता और निष्पक्षता प्रभावित हो रही है.
भोपाल के पत्रकार और फिल्म निर्माता नीरज निगम ने मार्च 2019 में सूचना का अधिकार (RTI) के तहत एक आवेदन देकर कुछ सरकारी जानकारी मांगी थी. नियमानुसार, आवेदन का उत्तर 30 दिनों में दिया जाना चाहिए था, लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला. इसके बाद उन्होंने नियमानुसार जानकारी निःशुल्क देने की मांग की, क्योंकि सूचना समय सीमा में उपलब्ध नहीं कराई गई थी.
सूचना आयोग का विवादास्पद फैसला
जब आवेदक को 30 दिनों के भीतर कोई उत्तर नहीं मिला तो उन्होंने पहले अपील दायर की, लेकिन प्रथम और द्वितीय अपील में भी उनकी मांग को खारिज कर दिया गया. इसके बाद सूचना आयोग ने उनके आवेदन को स्वीकार करने के बजाय 2,12,000 रुपए की राशि जमा करने का पत्र भेज दिया.
सूचना आयोग के इस निर्णय को चुनौती देते हुए नीरज निगम ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उनके वकील दिनेश उपाध्याय ने दलील दी कि आयोग ने गलत तर्कों के आधार पर अपील को खारिज किया. उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट मामला था, जिसमें आवेदक को फ्री ऑफ कॉस्ट जानकारी दी जानी चाहिए थी.
हाई कोर्ट का कड़ा रुख
हाई कोर्ट ने सुनवाई के बाद माना कि सूचना आयोग का निर्णय पूरी तरह अनुचित था और पारदर्शिता के सिद्धांतों के खिलाफ था. कोर्ट ने सूचना आयुक्त के आदेश को न केवल रद्द किया, बल्कि उन पर 40,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया. इसके साथ ही कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि वह आवेदक को मांगी गई जानकारी निःशुल्क उपलब्ध कराए.
आयोग की हठधर्मिता पर नाराजगी
गौरतलब है कि हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद सूचना आयुक्त ने अपने फैसले में कोई बदलाव नहीं किया था. इससे स्पष्ट हुआ कि आयोग सरकार के हितों की रक्षा करने के लिए कार्य कर रहा था, बजाय इसके कि वह नागरिकों के सूचना के अधिकार को सुनिश्चित करे.
इस फैसले से स्पष्ट संदेश गया है कि सूचना का अधिकार आम नागरिकों का मूल अधिकार है और इसे दबाया नहीं जा सकता. हाई कोर्ट का यह आदेश न केवल सूचना आयोग की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही को भी मजबूती देता है.
(WRIT PETITION (WP) 29100/2023)