Law Trend: Article: Tuesday,
17 December 2024.
एक महत्वपूर्ण निर्णय में, न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की अध्यक्षता में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (एमजीएनआरईजी अधिनियम) के तहत नियुक्त लोकपाल सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 के दायरे में आता है। न्यायालय ने छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयुक्त के निर्देश को बरकरार रखा, जिसके अनुसार लोकपाल को आरटीआई आवेदक द्वारा मांगी गई कुछ जानकारी का खुलासा करना आवश्यक था।
मामले की पृष्ठभूमि:
यह मामला 2016 के डब्ल्यूपीसी नंबर 2874
के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसे एमजीएनआरईजी अधिनियम के
लोकपाल द्वारा दायर किया गया था,
जो बस्तर जिले में लोक सूचना अधिकारी (पीआईओ) के रूप में भी
कार्य करता है। याचिकाकर्ता ने छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयुक्त द्वारा जारी 30 अगस्त,
2016 के आदेश को चुनौती दी
थी। इस आदेश में लोकपाल को मनरेगा अधिनियम के तहत दायर शिकायतों और जांच रिपोर्टों
के बारे में बीरबल रात्रे
(प्रतिवादी संख्या 3) द्वारा
मांगी गई जानकारी प्रदान करने का निर्देश दिया गया।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि लोकपाल द्वारा रखी गई जानकारी मनरेगा अधिनियम के तहत गोपनीय थी और आरटीआई अधिनियम की धारा 8 के तहत प्रकटीकरण से छूट प्राप्त थी। अनुरोधित विवरण में लोकपाल के पास दायर सभी शिकायतों, जांच रिपोर्टों, नोटशीट और 1 जनवरी, 2015 और अगस्त 2015 के बीच जांच के दौरान दर्ज किए गए बयानों की प्रतियां शामिल थीं।
न्यायालय की टिप्पणियाँ और निर्णय:
न्यायमूर्ति गुरु ने
एमजीएनआरईजी अधिनियम की धारा 27 के तहत जारी निर्देशों का
विश्लेषण किया, विशेष रूप से निर्देश 15.1, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि लोकपाल आरटीआई
अधिनियम के अंतर्गत आता है। न्यायालय ने उद्धृत किया:
“एक बार जब विशेष अधिनियम 2005, यानी एमजीएनआरईजी अधिनियम, आरटीआई अधिनियम के अंतर्गत लोकपाल को शामिल कर लेता है, तो मांगी गई जानकारी का खुलासा किया जाना चाहिए।”
आरटीआई अधिनियम की धारा 8 पर याचिकाकर्ता के भरोसे को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा: “धारा 8 लोकपाल के कार्यों या इस मामले में मांगी गई जानकारी को छूट प्रदान नहीं करती है।”
एक महत्वपूर्ण निर्णय में, न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की अध्यक्षता में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (एमजीएनआरईजी अधिनियम) के तहत नियुक्त लोकपाल सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 के दायरे में आता है। न्यायालय ने छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयुक्त के निर्देश को बरकरार रखा, जिसके अनुसार लोकपाल को आरटीआई आवेदक द्वारा मांगी गई कुछ जानकारी का खुलासा करना आवश्यक था।
मामले की पृष्ठभूमि:
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि लोकपाल द्वारा रखी गई जानकारी मनरेगा अधिनियम के तहत गोपनीय थी और आरटीआई अधिनियम की धारा 8 के तहत प्रकटीकरण से छूट प्राप्त थी। अनुरोधित विवरण में लोकपाल के पास दायर सभी शिकायतों, जांच रिपोर्टों, नोटशीट और 1 जनवरी, 2015 और अगस्त 2015 के बीच जांच के दौरान दर्ज किए गए बयानों की प्रतियां शामिल थीं।
न्यायालय की टिप्पणियाँ और निर्णय:
“एक बार जब विशेष अधिनियम 2005, यानी एमजीएनआरईजी अधिनियम, आरटीआई अधिनियम के अंतर्गत लोकपाल को शामिल कर लेता है, तो मांगी गई जानकारी का खुलासा किया जाना चाहिए।”
आरटीआई अधिनियम की धारा 8 पर याचिकाकर्ता के भरोसे को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा: “धारा 8 लोकपाल के कार्यों या इस मामले में मांगी गई जानकारी को छूट प्रदान नहीं करती है।”
न्यायालय ने निष्कर्ष
निकाला कि राज्य सूचना आयुक्त का आदेश कानूनी रूप से वैध और लागू करने योग्य था।
परिणामस्वरूप, सूचना आयुक्त के 30 दिनों
के भीतर जानकारी का
खुलासा करने के निर्देश की पुष्टि करते हुए रिट याचिका को खारिज कर दिया गया।
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