शिमला ब्यूरो: हर्षित शर्मा: शनिवार, नवंबर 02, 2024।
प्लांट से छोड़े बेकार पदार्थ मिले 40 गुना ज्यादा प्रदूषक, गिरि पेयजल परियोजना के पानी को कर रहा दूषित
शहर के लिए यहां से होती है पानी की आपूर्ति, सैंपल फेल होने के बावजूद नहीं रोकी जा रही आपूर्ति
हिमाचल प्रदेश बागवानी उत्पाद विपणन प्रसंस्करण निगम (एचपीएमसी) के पराला फ्रूट प्रोसेसिंग प्लांट से निकलने वाला वेस्ट (कचरा) आम लोगों के स्वास्थ्य पर भारी पड़ता नजर आ रहा है। इस प्लांट का निर्माण 100.5 करोड़ से हुआ है।
प्लांट से निकलने वाला वेस्ट गिरि पेयजल परियोजना में मिल रहा है। गिरि से पानी की आपूर्ति शिमला शहर के लिए होती है। करोड़ों की लागत से पराला में बने प्लांट में शहर को पेयजल आपूर्ति करने वाली गिरि नदी में तय मापदंडों से 40 गुना ज्यादा दूषित पानी छोड़ा है। इसका खुलासा सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के जरिये प्राप्त प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में हुआ है। तीन अक्तूबर को पेयजल परियोजना में पराला प्लांट से निकले तरल पदार्थ के पहुंचने से पेयजल आपूर्ति बंद कर दी थी।
प्लांट 10 दिन तक बंद रहा था, उसके बाद इसे फिर शुरू कर दिया। प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक प्लांट से छोड़े जा रहे पानी के सैंपल अगस्त से अभी तक एक बार भी पास नहीं हुए हैं। बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी की नियमित जांच के बाद बनाई रिपोर्ट से पता चला है कि सेब को धोने के बाद निकले पानी को बिना साफ किए खुली नालियों में फेंका जा रहा है। इसके अलावा प्लांट के संचालन के दौरान ईटीपी लॉगबुक भी नहीं बनाई है जिसमें जल प्रवाह, परिचालन समय, पीएच स्तर, कीचड़ की मात्रा, रासायनिक खपत, उपचारित पानी की मात्रा, बिजली मीटर रीडिंग, ऑपरेटर के हस्ताक्षर और नोट्स की जानकारी होती है। इसके अतिरिक्त उत्पादन क्षेत्र से एक फ्लेक्सिबल पाइप सीधे नाले में गंदा पानी बहाते हुए मिला हैै। यह दूषित पानी गिरि खड्ड के नजदीकी नाले में बहाया जा रहा था जिससे पानी में झाग बन रहा था। इसकी गुणवत्ता में गिरावट आई है।
एचपीएमसी के प्रबंध निदेशक सुदेश कुमार मोक्टा ने बताया कि प्लांट के संचालन को सुधारा है। प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सैंपलों के बारे में उन्हें काई जानकारी नहीं है। एसजेपीएनएल (शिमला जल प्रबंध निगम लिमिटेड) के एजीएम प्रेम प्रकाश शर्मा ने बताया कि प्लांट के निर्माण के दौरान भी प्लांट से मलबा गिरि के किनारे फेंका था जिसकी शिकायत प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों को की थी।
पेयजल परियोजना में संक्रमण का खतरा
गिरि पेयजल परियोजना से शिमला शहर को रोजाना 18 एमएलडी पानी मिलता है। गिरि खड्ड को पहले से ही राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने प्रदूषित नदियों की सूची में शामिल कर रखा है। अब इतने दूषित पानी को बहाने से गिरि का पानी और प्रदूषित होगा। यही पानी शिमला पहुंचता है और इसके सेवन से बीमारियां फैलने का खतरा है।
सैंपल रिपोर्ट में मिले हैं प्रदूषक
प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ताजा सैंपल रिपोर्ट में प्लांट से छोड़े जा रहे पानी में बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड 1200 मिलीग्राम प्रति लीटर है जो 30 मिलीग्राम से कम होनी चाहिए थी। पानी में केमिकल ऑक्सीजन डिमांड 3060 के स्तर पर है जो 250 से कम होनी चाहिए। प्लांट से छोड़ जा रहे पानी में सस्पेंडिड सॉलिड 910 के स्तर पर है जो 100 से कम होना चाहिए। तय मापदंडों से कहीं गुना ज्यादा प्रदूषकों से भरा पानी गिरी में छोड़ा जा रहा है।
सैंपल फेल, फिर भी शुरू कर दिया संचालन
बोर्ड ने प्लांट से पिछले साल सितंबर में सैंपल लिए थे लेकिन वह भी फेल थे। इसके बाद प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सरकार को एनजीटी के मानकों के तहत पराला प्लांट पर जुर्माना लगाने की सिफारिश की थी। लेकिन प्लांट पर जुर्माने की जगह जनवरी में इसका उद्घाटन कर दिया था। जून से प्लांट में सेब से जूस और वाइन बनाने का कार्य शुरू हुआ था। एक साल से इसके सैंपल फेल हो रहे हैं और अभी तक एक लाख जुर्माना लगाया जा चुका है।
गंदे पानी से होते हैं कई रोग : डॉ. शीतल
पंडित जवाहर लाल नेहरू राजकीय मेडिकल कॉलेज चंबा की डाॅ. शीतल कश्यप ने बताया कि यदि लोग दूषित पानी पीते हैं तो उन्हें हैजा, पेचिश, दस्त जैसे जल-जनित रोग हो सकते हैं। लंबे समय तक सेवन करने पर मृत्यु भी हो सकती है। दूषित पानी एक धीमा जहर साबित हो सकता है। हानिकारक रसायन मानव शरीर में बढ़ सकते हैं और किडनी रोग, जन्म दोष और हृदय रोग हो सकते हैं। यदि यह पानी खेतों में छिड़का जाता है, तो इससे फसलों में प्रदूषण हो सकता है।