Wednesday, October 30, 2024

क्या RTI Act के तहत परीक्षकों की पहचान, उत्तर पुस्तिकाओं और इंटरव्यू में प्राप्त अंकों का खुलासा किया जा सकता है? : Himanshu Mishra

Live Law: National: Wednesday, 30 October 2024.
यह लेख
Kerala Public Service Commission (KPSC) v. State Information Commission मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर केंद्रित है। कोर्ट ने इस सवाल का समाधान किया कि क्या उम्मीदवारों को RTI Act के तहत उन परीक्षकों (Examiners) के नाम जानने का अधिकार है जिन्होंने उनकी उत्तर पुस्तिकाओं (Answer Sheets) का मूल्यांकन किया।
इस निर्णय ने पारदर्शिता (Transparency) और गोपनीयता (Confidentiality) के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया है, खासकर उन मामलों में जहाँ सार्वजनिक निकाय (Public Authority) विशेष कार्यों के लिए एजेंट (Agents) नियुक्त करते हैं।
पारदर्शिता और उत्तरदायित्व (Transparency and Accountability) में RTI की भूमिका (Role of RTI)
RTI Act नागरिकों को सार्वजनिक निकायों से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार देकर पारदर्शिता को बढ़ावा देता है। हालांकि, इस अधिनियम में कुछ संवेदनशील सूचनाओं (Sensitive Information) की सुरक्षा के लिए छूट भी दी गई है।
Section 8(1)(e) के तहत उन सूचनाओं के खुलासे पर रोक है, जो विश्वासपूर्ण (Fiduciary) संबंधों में साझा की गई हैं, जहाँ एक पक्ष (Party) दूसरे पर निष्ठा और ईमानदारी से कार्य करने का भरोसा करता है। इस मामले में, कोर्ट के सामने चुनौती यह थी कि क्या PSC और परीक्षकों के बीच का संबंध इस Fiduciary श्रेणी (Category) में आता है।
RTI Act के तहत Fiduciary संबंधों का मूल्यांकन (Evaluating Fiduciary Relationships)
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में Public Service Commission (PSC) और परीक्षकों (Examiners) के बीच के Fiduciary संबंध पर विचार किया। कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि PSC और परीक्षकों के बीच Principal-Agent का संबंध है। यहाँ PSC को परीक्षकों पर यह भरोसा है कि वे उत्तर पुस्तिकाओं का ईमानदारी (Honesty) और निष्पक्षता (Impartiality) से मूल्यांकन करेंगे।
वहीं, परीक्षकों को यह विश्वास है कि PSC उनकी गोपनीयता (Confidentiality) बनाए रखेगा और उन्हें किसी भी प्रकार की प्रतिकूल परिस्थिति (Adverse Consequences) का सामना नहीं करना पड़ेगा।
कोर्ट ने यह तर्क दिया कि परीक्षकों की पहचान उजागर करने से वे असफल उम्मीदवारों की प्रतिशोधात्मक (Retaliatory) हरकतों का शिकार हो सकते हैं। साथ ही, इससे भविष्य के परीक्षाओं में भ्रष्टाचार (Corruption) की संभावनाएँ बढ़ सकती हैं, जहाँ उम्मीदवार व्यक्तिगत लाभ के लिए परीक्षकों से संपर्क करने का प्रयास कर सकते हैं।
ऐसे में परीक्षकों की पहचान गोपनीय रखना परीक्षा प्रक्रिया (Examination Process) की निष्पक्षता बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
पारदर्शिता और गोपनीयता में संतुलन (Balancing Transparency and Confidentiality)
कोर्ट ने माना कि उम्मीदवारों को अपनी उत्तर पुस्तिकाओं (Answer Sheets) और इंटरव्यू में प्राप्त अंकों (Interview Marks) की जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है। यह अधिकार निष्पक्षता (Fairness) और उत्तरदायित्व (Accountability) सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है और RTI Act के उद्देश्यों के अनुरूप है।
हालाँकि, कोर्ट ने उत्तर पुस्तिकाओं और अंकों की जानकारी देने और परीक्षकों की पहचान उजागर करने के बीच अंतर किया। जहाँ उम्मीदवारों की व्यक्तिगत जानकारी देना पारदर्शिता सुनिश्चित करता है, वहीं परीक्षकों की पहचान उजागर करना न तो सार्वजनिक हित (Public Interest) में है और न ही परीक्षा प्रक्रिया के लिए उचित।
इस प्रकार, पारदर्शिता को इस सीमा तक लागू किया जाना चाहिए, जहाँ वह गोपनीयता और प्रक्रिया की निष्पक्षता से समझौता न करे।
महत्वपूर्ण संदर्भित निर्णय (Key Precedents Discussed)
इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने Treesa Irish v. Kerala Public Service Commission और Centre of Earth Science Studies v. Anson Sebastian जैसे महत्वपूर्ण फैसलों का भी उल्लेख किया।
इन फैसलों में RTI Act की धारा 8(1)(e) के तहत Fiduciary संबंधों की परिभाषा और जानकारी के खुलासे की सीमाओं को स्पष्ट किया गया है। इन पूर्व निर्णयों ने कोर्ट को यह समझने में मदद की कि किन परिस्थितियों में गोपनीयता बनाए रखना आवश्यक है।
पारदर्शिता और गोपनीयता के बीच संतुलन बनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह निष्कर्ष दिया कि उम्मीदवारों को उनकी उत्तर पुस्तिकाओं और अंकों की जानकारी दी जा सकती है, लेकिन परीक्षकों की पहचान गोपनीय रखनी चाहिए।
यह निर्णय सुनिश्चित करता है कि सार्वजनिक परीक्षाओं की निष्पक्षता (Integrity) बनी रहे और उम्मीदवारों को भी निष्पक्ष रूप से आंका जाए। RTI Act के उद्देश्य को बनाए रखते हुए यह निर्णय इस बात पर जोर देता है कि पारदर्शिता वहाँ तक सीमित रहनी चाहिए, जहाँ वह व्यक्तिगत हितों और सार्वजनिक सेवाओं की अखंडता से टकराव न करे।