Thursday, August 31, 2023

कर्मचारी सर्विस लिटिगेशन के लिए आरटीआई एक्ट के तहत सहकर्मी के सर्विस रिकॉर्ड की मांग कर सकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट

Live Law: Jharkhand: Thursday, 31 August 2023.
कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सूचना आयुक्त द्वारा पारित वह आदेश रद्द कर दिया है, जिसमें कॉलेज प्रोफेसर द्वारा अपने सहकर्मी के सर्विस रिकॉर्ड विवरण की मांग करने वाला आवेदन खारिज कर दिया गया था।
जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित की एकल पीठ ने ए एस मल्लिकार्जुनस्वामी द्वारा दायर याचिका स्वीकार कर ली। साथ ही आयोग की याचिका रद्द कर दी, जिसके तहत सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 8 (1) (जे) के प्रावधानों का हवाला देते हुए उनके आरटीआई आवेदन को अस्वीकार कर दिया गया था।
एक्ट की धारा 8 (1)(जे) इस प्रकार है: इस अधिनियम में निहित किसी भी बात के बावजूद, किसी भी नागरिक को - (जे) जानकारी देने की कोई बाध्यता नहीं होगी, जो व्यक्तिगत जानकारी से संबंधित है। इसके प्रकटीकरण का किसी भी सार्वजनिक गतिविधि या हित से कोई संबंध नहीं है, या जो व्यक्ति की गोपनीयता में अनुचित हस्तक्षेप का कारण बनेगा, जब तक कि केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी या अपीलीय प्राधिकारी, जैसा भी मामला हो, संतुष्ट नहीं है कि व्यापक सार्वजनिक हित ऐसी जानकारी के प्रकटीकरण को उचित ठहराता है।
कोर्ट ने कहा,
एक्ट की धारा 8(1)(जे) को लागू करने की कोई गुंजाइश नहीं है, क्योंकिक्यों याचिकाकर्ता प्रतिवादी संस्थान के लिए अजनबी नहीं है, बल्कि वर्षों से वहां कार्यरत लेक्चरर है; यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि सर्विस में शिकायतों के निवारण के लिए कर्मचारी को उसी नियोक्ता के तहत काम करने वाले अन्य कर्मचारियों का पूरा सर्विस रिकॉर्ड रखना होगा, खासकर जब पुष्टि, वरिष्ठता, पदोन्नति या इस तरह से संबंधित विवाद उत्पन्न होता है।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि वह आरटीआई आवेदन में दर्शाए गए व्यक्तियों की सेवा के विवरणों को जानने का हकदार है, क्योंकिक्यों वह जानकारी सर्विस लॉ में पुष्टिकरण, वरिष्ठता, पदोन्नति और इसी तरह के उनके दावों को संरचित करने के लिए आधार प्रदान करती है।
याचिकाकर्ता के तर्क से सहमत होते हुए पीठ ने कहा,
याचिकाकर्ता का यह तर्क देना उचित है कि जब तक उन व्यक्तियों की सेवा विवरण प्रस्तुत नहीं किया जाता है, जो उसने आरटीआई आवेदन में मांगे हैं, वह सेवा मामले में उसकी शिकायत पर काम करने की स्थिति में शामिल नहीं होगा।"
इसके अलावा अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता का दिनांक 02.06.2011 के सरकारी आदेश पर भरोसा करना उचित है, जो आरक्षण से संबंधित सेवा शर्तों में छूट देने के लिए कुछ पैरामीटर निर्धारित करता है।
इसमें कहा गया,
उक्त सरकारी आदेश के तहत लाभ प्राप्त करने के लिए याचिकाकर्ता ने जो जानकारी मांगी है, वह आवश्यक हो जाती है। जानकारी देने से इनकार करना वास्तव में याचिकाकर्ता को उक्त सरकारी आदेश का लाभ उठाने का अवसर देने से इनकार करने के समान है।''
तदनुसार, कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली और प्रिंसिपल मारिमल्लापास पीयू कॉलेज, मैसूर को निर्देश दिया कि वे तीन सप्ताह की अवधि के भीतर संबंधित व्यक्तियों की सेवा विवरण और उस संबंध में रिकॉर्ड की प्रतियां प्रस्तुत करें। ऐसा न करने पर प्रत्येक दिन की देरी के लिए याचिकाकर्ता को अपनी जेब से 1,000 रुपये की राशि का प्रतिवादी को भुगतान करना होगा। प्रिंसिपल को खर्च के लिए 5,000 रुपये का भुगतान भी करना होगा।
(केस टाइटल: ए एस मल्लिकार्जुनस्वामी, और राज्य सूचना आयुक्त और अन्य। केस नंबर: रिट याचिका नंबर 23695/2022)