Monday, February 01, 2016

यहां सरकारी कारिंदे उड़ा रहे आरटीआई कानून की धज्जियां

Rajasthan Patrika: Jodhpur: Monday, 01 February 2016.
आरटीआई कानून की विभिन्न दफ्तरों में तैनात अफसर धज्जियां उड़ाने में लगे हुए हैं। सरकार और सूचना आयोग दोनों ही हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं तभी तो सूचना नहीं देने वाले सरकारी कारिंदे करीब डेढ़ करोड़ रुपए अपने वेतन से जुर्माने के रूप में नहीं भरने की खुली चुनौती देने की हिमाकत दिखा रहे हैं।
सूचना के अधिकार कानून में अपीलार्थी को एक-दो साल बाद में सुनवाई की तारीख मिलती है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि नौकरशाही किस कद्र तक इस जनहित के कानून को रोंदने में लगी हुई है।
दो सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो अलग अलग विभागों में आरटीआई कार्यकर्ताओं ने 80 हजार आवेदन लगाए। कोताही बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ  राज्य सूचना आयोग ने पिछले कुछ सालों में 1.60 करोड़ रुपए का जुर्माना ठोका। लेकिन नतीजा बेअसर रहा। जुर्माना नहीं भरने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही के अधिकार खुद सूचना आयोग के पास ही नहीं है।
16 हजार से ज्यादा अपीलें लम्बित:
आलम ये है कि अब सूचना आयोग में 16 हजार 200 आवेदन पेंडिंग हैं। अधिकारी या तो सूचना देने से ही पल्ला झाड़ लेते हैं या फिर विलंब करके उसके औचित्य को कम करने का प्रयास करते हैं। सूचना के आवेदनों पर तरह तरह के जवाब देना भी इन्हीं तरीकों में शामिल हैं। मजे की बात तो यह है सूचना आयोग का कुल बजट ही दो करोड़ के लगभग है और इतनी राशि तो जुर्माने के रूप में अधिकारी दबाए बैठे हैं।
सरकार पर पांच विभाग भारी:
स्वायत्त शासन विभाग के अधीन आने वाले नगर निगम, विकास प्राधिकरण, शिक्षा, राजस्व, पंचायतीराज एेसे विभाग हैं जो आरटीआई में सूचना नहीं देने के लिए सबसे ज्यादा बदनाम हैं। क्योंकि आमजन का इन विभागों में ज्यादा काम पड़ता है। समय पर काम नहीं होने पर आरटीआई का सहारा लिया जाता है।
कब मिलेगा न्याय:
पूरे राज्य में सूचना से जुड़ी 16 हजार अपीलें लम्बित है। बकाया जुर्माना राशि वर्ष 2010-11 तक मात्र 25 लाख थी जो 2011-12 में बढ़कर 35 लाख, 2012-13 में 65 लाख, 2013-14 में 95 लाख और 2014-15 में 1.52 करोड़ रुपए हो गई है।
जुर्माने से जुड़े मामलों की बात करें तो इनकी संख्या 2011 में 24 थी, 2012 में 175, 2013 में 275, 2014 में 490 और 2015 में 970 पहुंच गई। इन मामलों में अपील करने वाले आवेदकों को सुनवाई का मौका मिलेगा, एक-दो साल बाद में। यह सब इसलिए हो रहा है ंकि आरटीआई कानून का डर अधिकारियों में खत्म सा हो गया है।
यह स्थिति भी सामने आई:
कुछ समय पहले एक संस्था ने राजस्थान सहित पांच राज्यों में आरटीआई को लेकर एक सर्वेक्षण किया था। इस सर्वेक्षण के जरिए आरटीआई एक्ट से निकले परिणामों को लेकर आम लोगों की राय जानी गई थी। सर्वे के परिणाम के मुताबिक केवल 25 फीसदी लोग ही आरटीआई से मिलने वाली सूचनाओं को लेकर संतुष्ट थे। वहीं 50 फीसदी लोगों ने बताया कि आरटीआई से मिलने वाली सूचनाओं के लिए उन्हें बेहद मशक्कत करनी पड़ रही है।
आवेदकों को कर रहे हतोत्साहित:
आरटीआई के तहत मांगी जानेवाली सूचनाओं के जरिए भ्रष्टाचार के बहुत से ऐसे मामले हाल में सामने आए हैं। यह भी एक बड़ी वजह है कि ऊंचे पद पर बैठे ब्यूरोक्रेट्स के खिलाफ  जाने वाली सूचनाओं को आरटीआई के जवाब के रूप में देने से कई कर्मचारी कतराते हैं। आवेदनों को तमाम विभागों को अंतरित कर देने या फिर बहुत अधिक पन्नों में बता कर आवेदक को हतोत्साहित कर रहे हैं। :नन्दलाल व्यास, वरिष्ठ आरटीआई कार्यकर्ता
मैं अभी अवकाश पर हूं
सभी खाली पद भरने के बाद लम्बित मामलों के निस्तारण का काम तेजी से हो रहा है। सम्बन्धित विभाग के मुखिया की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे जुर्माना राशि वसूल करके सरकारी खजाने में जमा करवाए। फिलहाल मैं डेढ़ महीने से अवकाश पर हूं। इसलिए ज्यादा जानकारी नहीं दे सकता।
ताराचंद मीणा, सचिव, राजस्थान सूचरा आयोग