News18: Ranchi: Thursday, December 24, 2015.
झारखंड
में सूचना का अधिकार महज दिखावा बनकर रह गया है. अधिकारियों की बेरुखी से न केवल
आम लोग परेशान हैं बल्कि इस अधिकार को संरक्षित करने वाली संस्था राज्य सूचना आयोग
भी बेहद परेशान है. ऐसे में आरटीआई के तहत कोई जानकारी लेना यहां टेढ़ी खीर की तरह
है.
सूचना
का अधिकार कानून आने के दो साल के भीतर आनी वर्ष 2007
में राज्य सूचना आयोग का गठन हो गया,
मगर दिखावा से आगे की
भूमिका अभी तक तय नहीं कर पाया है.
महीनों
का इंतजार;
आरटीआई
एक्टिविस्ट राजीव कुमार कहते हैं कि आरटीआई के तहत मांगी गई सूचना या तो नहीं दी
जाती है या दी भी जाती है तो प्रश्नों के जबाब कुछ इस तरह उलझे रहते हैं कि इससे
आम लोग परेशान होकर दूसरे अपील की ओर जाने को विवश हो जाते हैं. आरटीआई
एक्टीविस्टों की परेशानी यहीं खत्म नहीं हो जाती. दूसरी अपील में भी उन्हें काफी
मशक्कत करनी पड़ती है. आयोग में केसों की लंबी सूची होने के कारण उन्हें कई महिनों
तक इंतजार करना होता है. सुनवाई पूरी होते-होते कई वर्ष लग जाते हैं. मगर उन्हें
समुचित जानकारी नहीं मिल पाती है.
जाने-अनजाने
कारण;
आरटीआई
एक्टिविस्ट राजीव कुमार कहते हैं कि दो कारणों से दिक्कत आती है. एक तो जन सूचना
पदाधिकारी आमतौर पर इतने पढ़े लिखे नहीं होते कि समझ पाए कि कौन सी सूचना मांगी जा
रही है. दूसरा कारण जानबूझ कर गलत सूचना देना भी है. बकौल राजीव कुमार, कई बार सूचना मांगने पर बौखला कर अस्सी नब्बे हजार
पेज पेश कर दिए जाते हैं और दो रुपए प्रति कॉपी की दर से लाखों की राशि वसूलने की
बात कही जाती है.
आयोग
खुद परेशान;
इधर
राज्य सूचना आयोग खुद प्रशासनिक अधिकारियों की रवैया से परेशान है, जिससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिस आयोग पर
इसे संरक्षित करने की जिम्मेदारी है वह खुद बेहद लाचार हैं.
सूचना
आयुक्त हिमांशु चौधरी कहते हैं कि दरअसल समस्या मानसिकता की है. जो सूचना उपलब्ध
कराने के लिए बैठे हैं, उन्हें यह समझने की दरकार है
कि वे जनता की सेवा के लिए बैठे हैं,
न कि शोषण के लिए.
उधर
मुख्य सूचना आयुक्त आदित्य स्वरूप भी कहते हैं कि जिम्मेदारों को अपने दायित्व के
प्रति गंभीर होना होगा. तभी वांछित सूचना मिल पाएगी.
बहरहाल, सूचना का अधिकार कानून का लाभ आम लोगों तक कैसे
पहुंचे इसके लिए न केवल प्रशासनिक अधिकारियों को ओपन माइंड से सोचना होगा, बल्कि आयोग को भी सख्त रुख अपनाना होगा.