नवभारत
टाइम्स: नई
दिल्ली: Monday, 22 September 2014.
सूचना
के अधिकार के तहत काम में पारदर्शिता लाने के अधिनियम के मद्देनजर मद्रास हाई
कोर्ट ने कहा है कि आरटीआई फाइल करते समय सूचना मांगने पर इसका कारण भी बताना
होगा। साथ ही, अदालत ने प्रमुख मेट्रोपॉलिटन
मैजिस्ट्रेट के खिलाफ शिकायत पर रजिस्ट्रार ऑफिस को फाइल नोटिंग का खुलासा करने से
छूट दे दी है। हाई कोर्ट के इस फैसले से आरटीआई कानून के तहत सूचना हासिल करने के
अधिकार पर दूरगामी प्रभाव पड़ने के आसार हैं। इसकी आलोचना कानून के विशेषज्ञों ने
भी की है।
'मकसद कानून संगत होना चाहिए'
जस्टिस
एन. पॉल वसंतकुमार और के. रविचंद्रबाबू की खंडपीठ ने कहा कि आवेदक को सूचना मांगने
का उद्देश्य जरूर बताना चाहिए। उसे यह भी पुष्टि करनी चाहिए कि उसका उद्देश्य
कानूनसंगत है। पीठ ने कहा कि अगर सूचना किसी ऐसे व्यक्ति को दी जाती है, जिसके पास इसे मांगने के पीछे कोई वजह नहीं है, तो इस तरह सूचनाओं के पर्चे बांटने से किसी उद्देश्य
की पूर्ति नहीं हो सकती। विधायिका ने जब आरटीआई कानून पारित किया था तो उसमें
विशेष तौर पर धारा 6(2) शामिल की गई थी। इस धारा के
अनुसार सूचना के लिए आवेदन देने पर व्यक्ति को इसके लिए कोई भी वजह देने की जरूरत
नहीं होगी। मद्रास हाई कोर्ट के आदेश में सूचना के अधिकार कानून की धारा 6(2) का जिक्र नहीं है।
'विधायिका के खिलाफ नहीं'
हाईकोर्ट
ने कहा कि अदालत का यह फैसला विधायिका के खिलाफ नहीं है, लेकिन कानून का मकसद पूरा होना चाहिए। अधिनियम का
उद्देश्य सार्वजनिक प्राधिकरण की पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ प्रभावी संचालन
सुनिश्चित करना है।
आदेश
RTI की मूल भावना के खिलाफ : भूषण प्रशांत
वरिष्ठ
अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने आदेश को 'अवैध' बताते हुए कहा है कि यह कानून की 'मूल भावना'
के खिलाफ है। प्रशांत
भूषण ने कहा कि यह हाई कोर्ट का सेल्फ सर्विंग ऑर्डर है। यह हाई कोर्ट और सुप्रीम
कोर्ट के पहले के आदेशों के अनुरूप नहीं है। इससे अदालत की प्रशासनिक पारदर्शिता
में रुकावट पड़ती है। आरटीआई के कार्यकर्ता सी. जे. करीरा ने कहा कि यह फैसला
आरटीआई कानून के लिए गंभीर झटका है। यह स्पष्ट रूप से कुछ किए बिना धारा 6(2) को निष्फल करने की कोशिश है। प्रसिद्ध आरटीआई
विशेषज्ञ शेखर सिंह ने भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सूचना के अधिकार को मूल अधिकार
के तौर पर परिभाषित किया है। इसका इस्तेमाल करने की किसी को कोई वजह बताने की
जरूरत नहीं है। लेकिन इस आदेश से हाई कोर्ट ने शीर्ष अदालत के पहले के आदेश को उलट
कर रख दिया है।
जिस
समय उन्होंने कहा कि सूचना मांगने वाले व्यक्ति को इसकी वजहें देनी होंगी, वहीं आवेदक के मौलिक अधिकार का हनन हो गया। कॉमनवेल्थ
ह्यूमन राइट्स इनीशिएटिव के कार्यक्रम संयोजक वेंकटेश नायक के अनुसार 'सूचना का अधिकार मौलिक अधिकार है। यह भारत में जन्मे
हर नागरिक को प्राप्त है। आपको अपने मौलिक अधिकारों के इस्तेमाल के लिए वजह बताने
की जरूरत नहीं है। सूचना के अधिकार को अनुच्छेद 19 (1) (ए)में
प्रदत्त भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अनुच्छेद 21 में वर्णित जीवन के अधिकार के तहत सुप्रीम कोर्ट से
मान्यता प्राप्त है। उन्होंने कहा कि जब कोई कहे कि एक नागरिक को यह साबित करने की
जरूरत है कि वह कोई सूचना विशेष किसलिए चाहता है, जबकि
उस सूचना को सार्वजनिक प्राधिकरण अपनी मर्जी से सार्वजनिक कर सकता है तो यह 'मौजूदा न्यायशास्त्र का मजाक' और 'एक बडा आश्चर्य' है।