Sahara Samay: Bhopal: Wednesday,
May 15, 2013.
रीवा
में मुख्यमंत्री से लेकर नेता,
अभिनेता और खिलाड़ी सभी
मजदूर है. जी नहीं ये महात्मा गांधी के रामराज्य की कल्पना का साकार रुप नहीं
बल्कि मनरेगा के तहत बनने वाले स्मार्ट कार्ड के जरिए हुए करोड़ों के फर्जीवाड़े
का सच है जिसे पढ़कर आप भी हैरत में पड़ जाएंगे.
सीधी, उमरिया रीवा में धांधली
छत्तीसगढ़
के मुख्यमंत्री रमन सिंह हो या गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, अभिनेता हो या खिलाड़ी, गजल
गायक जगजीत सिंह से लेकर विद्दाचरण शुक्ला हो या वसीम अकरम हो, ये सभी मनरेगा की लिस्ट में मजदूर हैं.
ये
सारा कारनामा है जिले में स्मार्ट कार्ड बनाने वाली कंपनी फिनो फिंटेच फाउंडेशन
का.
गरीबों
को उनके घरों में ही मजदूरी पहुंचाने की मंशा से यूनियन बैंक के सहयोग से फिनो ने
ये स्मार्ट कार्ड बनाए थे.
इसके
तहत मजदूरों को भुगतान के नाम पर करोड़ों का बंदरबांट भी कर दिया लेकिन हैरत की
बात है कि पूरे काम की मॉनिटरिंग करने वाले बैंक प्रबंधन को इतना बड़ा फर्जीवाड़ा
नहीं दिखा.
मनरेगा
पर पलीता लगाते हुए ग्रामीण विकास विभाग के अधिकारी और फिनो के एजेंटों ने करोड़ों
की राशि डकार ली है जबकि बैंक अधिकारियों की दलील है कि कार्ड बनाने और भुगतान
करने का काम फिनो ने किया है. वो तो सिर्फ संबंधित खाते में राशि का ट्रांसफर किया
करते थे.
उधर
इस फर्जीवाड़े पर आला अधिकारी चुप्पी साधे बैठे हैं तो कोई इसे अपने अधिकार
क्षेत्र से बाहर का मसला बताकर पल्ला झाड़ रहा है.
इस
सबसे एक बात को साबित है कि गरीबों तक उनका हक पहुंचाने के लिए चाहे कितने ही
रास्ते क्यों ना खोज लिए जाएं,
घोटाले, फर्जीवाड़े बदस्तूर जारी हैं सिर्फ शक्ल बदल रही है.
आरटीआई
से क्या हुआ खुलासा ?
आरटीआई
के मुताबिक राज्य के नौ जिलों के कलेक्टरों ने जिलों को दी गई आवंटित राशि की बजट
लिमिट से चार गुना तक ज्यादा रुपये खर्च कर दिए हैं और विभाग को उनका ब्योरा तक
नहीं दिया.
नियम
के मुताबिक कोई भी कलेक्टर जिलों को आवंटित राशि का छह फीसदी ही प्रशासनिक खर्च कर
सकता है लेकिन दतिया के कलेक्टर ने खर्च की सीमा से तकरीबन 25 फीसदी ज्यादा खर्च किया.
यही
हाल होशंगाबाद, भिंड नरसिंहपुर, रायसेन,
हरदा शिवपुरी श्योपुर और
शाजापुर का भी हैं. यहां के कलेक्टर ने भी आवंटित राशि से ज्यादा खर्च किए.
अब
मनरेगा आयुक्त ने कलेक्टरों को नोटिस जारी कर खर्च का ब्यौरा मांगा है. वहीं
करोड़ों की रकम की हेरा-फेरी के बाद अधिकारी खर्च का ब्यौरा तक देने को तैयार नहीं
है.
गौरतलब
है कि पहले भी वर्ष 2008 से 2013 के बीच लगभग 23
आईएएस अफसरों का नाम
घोटाले में सामने आ चुका है लेकिन कार्रवाई किसी पर भी नहीं हुई.