आज तक: लखनऊ: Monday, May 13, 2013.
उत्तर
प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार ने लोकायुक्त को सूचना के अधिकार (आरटीआई) के दायरे
से बाहर कर दिया है. सरकार ने यह जानकारी पिछले दिनों एक आरटीआई अर्जी पर राज्य
सूचना आयोग के समक्ष दी है.
लोकायुक्त
के जनसूचना अधिकारी अरविन्द कुमार सिंघल ने बीते शुक्रवार को मुरादाबाद के आरटीआई
कार्यकर्ता सलीम बेग की अर्जी पर राज्य सूचना आयोग में पेशी के दौरान दी गई लिखित
जानकारी में इस बारे में जानकारी दी. उन्होंने बताया, ‘आरटीआई की धारा आठ के तहत अन्वेषण एजेंसियां आच्छादित
नहीं हैं तथा लोक आयुक्त प्रशासन एक अन्वेषण एजेंसी है. इसी आधार पर शासन द्वारा
तीन अगस्त 2012 को इस सिलसिले में अधिसूचना
जारी कर लोकायुक्त कार्यालय को सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के दायरे से बाहर कर दिया है.’
बेग
ने 10 मई 2012 को आरटीआई अर्जी देकर लोकायुक्त कार्यालय से 13 मई 2007 से 8 मई 2012 तक प्रदेश के विभिन्न जिलों
से मुख्तलिफ विभागों के अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ शिकायत करने वाले
लोगों के नाम-पतों की सूची तथा उन शिकायतों पर की गई कार्यवाही एवं निस्तारित तथा
दोषसिद्ध शिकायतों की जिलेवार और वषर्वार सूची मांगी थी.
साथ
ही उन्होंने लोकायुक्त में दर्ज शिकायत के निस्तारण की समयसीमा एवं शुल्क की
जानकारी भी मांगी थी. इस पर 22 मई 2012 को लोकायुक्त कार्यालय द्वारा दिये गये जवाब में कहा
गया था कि उत्तर प्रदेश लोकायुक्त तथा उप लोकायुक्त आयुक्त अधिनियम 1975 के प्रावधानों के मद्देनजर अभिलेखों की प्रतियां
दिया जाना सम्भव नहीं है. साथ ही यह भी कहा गया कि शिकायतों के निस्तारण की कोई
समयसीमा तय नहीं है.
लोकायुक्त
कार्यालय के जवाब से असंतुष्ट होकर बेग ने राज्य सूचना आयोग में 12 जुलाई 2012 को शिकायत की थी जिस पर इस
साल 3 अप्रैल को हुई सुनवाई में
आयोग ने लोकायुक्त को नोटिस जारी करके पूछा था कि वह बताएं कि आखिर किन कारणों से
वांछित जानकारी नहीं दी जा रही है.
इस
पर 10 मई को आयोग के समक्ष पेश हुए
लोकायुक्त के जन सूचना अधिकारी सिंघल ने तीन अगस्त 2012
को जारी अधिसूचना का हवाला देते हुए बताया कि लोकायुक्त कार्यालय को आरटीआई के
दायरे से बाहर कर दिया गया है.
बेग
ने लोकायुक्त कार्यालय को आरटीआई के दायरे से बाहर किये जाने को मनमाना कदम करार
देते हुए कहा है कि यह आरटीआई कार्यकर्ताओं को हताश करने के लिये उठाया गया कदम
है. वह इसे उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे.
उन्होंने
कहा कि लोकायुक्त कार्यालय ने आरटीआई की धारा आठ के तहत अन्वेषण एजेंसियों के
सूचना का अधिकार कानून के तहत आच्छादित नहीं होने की बात कही है जो सरासर गलत है.
आरटीआई की धारा 24 (4) में स्पष्ट किया गया है कि कोई
भी राज्य मानवाधिकार और भ्रष्टाचार से जुड़े मुद्दों पर सूचना देने पर रोक नहीं
लगा सकता. बेग ने कहा कि वर्ष 2010 में राज्य की तत्कालीन
मायावती सरकार ने एक शासनादेश जारी कर सतर्कता विभाग को आरटीआई के दायरे से बाहर
कर दिया था. उन्होंने इसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जनहित याचिका के जरिये
चुनौती दी थी.
उन्होंने
बताया कि अदालत ने 25 अक्तूबर 2010 को पारित आदेश में कहा था कि सूचना का अधिकार
अधिनियम-2005 की धारा 24 (4) में स्पष्ट कहा गया है कि कोई भी राज्य मानवाधिकार
तथा भ्रष्टाचार से जुड़े मुद्दों पर आरटीआई के जरिये मांगी गयी जानकारी देने से
मना नहीं कर सकता.
बेग ने बताया कि न्यायालय के आदेश के बाद सतर्कता
विभाग को दोबारा आरटीआई के दायरे में बहाल कर दिया गया था.
