आज तक: नई
दिल्ली, 1 अप्रैल 2013.
सूचना
के अधिकार कानून के स्पष्ट उल्लंघन का एक मामला तब सामने आया जब प्रधानमंत्री
कार्यालय में जन सम्पर्क अधिकारी ने आवेदक को मांगी गई सूचना प्रदान करने से मना
करते हुए कहा कि वह यह बताने में विफल रहे हैं कि मांगी गई जानकारी किस प्रकार से
उनके लिए निजी, सामाजिक या राष्ट्रीय रूप में
उपयोगी है.
केंद्रीय
जन सूचना अधिकारी द्वारा आरटीआई कार्यकर्ता कोमोडोर (सेवानिवृत) लोकेश बत्रा को यह
जवाब तब दिया गया जबकि उनके वरिष्ठ अधिकारी प्रथम अपीलीय प्राधिकार ने मांगी गई
सूचना देने के स्पष्ट निर्देश दिये थे.
बत्रा
ने प्रधानमंत्री कार्यालय से जो सूचनाएं मांगी थी उनमें सूचना के अधिकार कानून की
धारा 4 (1) के तहत जिन फाइलों एवं
रिकार्डों को डिजिटल एवं कम्प्यूटरीकृत रूप में तैयार गया, उसका ब्यौरा शामिल है.
अपने
वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशों का पालन करने की बजाए सीपीआईओ एस ई रिजवी ने सूचना
देने से इंकार करते हुए कहा कि मांगी गई सूचना उस श्रेणी में आती है जहां
याचिकाकर्ता ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि जानकारी उसके लिए निजी, सामाजिक या राष्ट्रीय रूप में किस तरह से उपयोगी है.
सूचना
के अधिकार कानून के तहत, आरटीआई आवेदकों को सूचना
मांगने के लिए कोई कारण देने की जरूरत नहीं होती है. कानून के मुताबिक, सूचना देने से तभी मना किया जा सकता है जब यह
पारदर्शिता कानून के छूट के उपबंध के तहत आता हो. सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई)
की धारा 4 (1) (ए) में कहा गया है कि प्रत्येक
सार्वजनिक प्राधिकार को सभी रिकार्डों को सूचीबद्ध करके ऐसे रखना चाहिए कि जो
आरटीआई कानून के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने में मदद करे.
उन्हें
यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी रिकार्ड कम्प्यूटरीकृत हो और देश में विभिन्न
प्रणालियों से एक नेटवर्क के जरिये जुड़ा हुआ हो ताकि रिकार्ड आसानी से मिल सके.
पूर्व
मुख्य सूचना आयुक्त ए एन तिवारी ने एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि सीपीआईओ यह
नहीं पूछ सकते कि आरटीआई आवेदकों के लिए सूचना किस प्रकार से उपयोगी है.
धारा
4 (1) (ए) सार्वजनिक प्राधिकार को
आरटीआई कानून लागू होने के 120
दिन के भीतर उसके तहत
आने वाले सभी दस्तावेजों की श्रेणी का उल्लेख करने वाला बयान सार्वजनिक करने का
उल्लेख करता है.