Tuesday, May 23, 2017

भ्रष्टाचार छिपाने RTI एक्ट की धज्जियां उड़ा रहा है GDA

Pradesh Today: Gwaliar: Tuesday, May 23, 2017.
ग्वालियर विकास प्राधिकरण के जनसंपर्क अधिकारी (पीआरओ) योगेश शुक्ला द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार की फेहरिस्त यूं तो काफी लंबी है, लेकिन अपनी इस कारस्तानी को छुपाने के लिए उक्त महाशय पूरी तरह से सजग रहते हैं, जिसके चलते वह सूचना का अधिकार अधिनियम की खुलेआम धज्जियां उड़ा रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि सभी शासकीय प्रक्रि याओं को पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम वर्ष-2005 में शुरू किया गया था, जिसके तहत सभी शासकीय दफ्तरों में लोक सूचना अधिकारी एवं अपीलीय अधिकारी की नियुक्ति की गई है, जिनके माध्यम से हर वह जायज जानकारी हासिल की जा सकती है, जिसे सार्वजनिक करने में किसी को निजी तौर पर नुकसान नहीं पहुंचता हो। इस कानून के तहत जानकारी देना आवश्यक करने के साथ ही निर्धारित समयावधि में जानकारी नहीं दिए जाने पर हर्जाना दिए जाने का प्रावधान भी है। कहने व देखने को कानून बेहद सख्त है, लेकिन जीडीए में उक्त कानून की सरे आम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। दरअसल ग्वालियर विकास प्राधिकरण में विभिन्न योजनाओं में घपला करके  जहां अधिकारियों द्वारा जमकर बंदरबांट की जा रही है। वहीं जनसंपर्क अधिकारी योगेश शुक्ला द्वारा विज्ञापन व निविदाएं प्रकाशित करने की रोस्टर प्रणाली मनमाने तरीके से संचालित कर जमकर कमीशन खोरी हो रही है। यदि इस भ्रष्टाचार व घोटाले की अधिकृत जानकारी हासिल करने के लिए कोई जागरूक व्यक्ति जीडीए की आवक शाखा में सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन लगाने जाता है, तो वहां मौजूद आवक बाबू उसका आवेदन नहीं लेते हुए उसे टालते नजर आते हैं। किसी तरह आवेदन जमा करवा भी दिया जाए, तो उसका कोई जवाब नहीं दिया जाता है। इसके अलावा अगर किसी आवेदन का जवाब देते भी हैं, तो उसमें उन महत्वपूर्ण बिंदुओं की जानकारी छुपा दी जाती है, जिससे कि इनके काले कारनामे उजागर होने की संंभावना रहती है।
जानकारी देना संभव नहीं
ग्वालियर विकास प्राधिकरण के जनसंपर्क अधिकारी से संबंधित कोई जानकारी यदि किसी कोई व्यक्ति आरटीआई के तहत् मांगी जाती है, तो उसके बदले में सामान्य बिंदुओं की जानकारी तो दे दी जाती है, जबकि उन बिंदुओं की जानकारी देने से परहेज किया जाता है, जिनसे कि जनसंपर्क अधिकारी के घपले उजागर होने की संभावना होती है। इन बिंदुओं के संबंध में कभी गोपनीयता, तो कभी प्रश्नवाचक बिंदु होने का हवाला देकर आवेदक को कहा जाता है कि उक्त जानकारी देना संभव नहीं है। ऐसे में शायद विभागीय कारिंदे यह भूल जाते हैं कि यदि आवेदक ने आगे की कार्रवाई कर दी तो उन्हें भी जुर्माने की कार्रवाई से जूझना पड़ सकता है। बहरहाल अफसरों के लिए कमाऊ पूत बने जनसंपर्क अधिकारी की ओर से सभी ने आंखें मूंद रखी हैं, जिसके चलते वह जमकर भ्रष्टाचार करने में लगे हुए हैं।