Saturday, February 28, 2015

आरटीआई का जवाब 40 हजार पन्नों में

अमर उजाला: लखनऊ: Saturday, 28 February 2015.
एक आरटीआई का जवाब 40 हजार पन्नों में, चौंक गए न। लेकिन जल निगम ने सुप्रीम कोर्ट की अनुश्रवण समिति के सदस्य डीके जोशी द्वारा सूचना अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी इतने पन्नों में उपलब्ध कराई है। यह अलग बात है कि यह मांगी गई सूचना के एक बिंदु का जवाब है। अभी चार और बिंदुओं पर जवाब मिलना बाकी है। यही जवाब विभाग ने दो साल में दिए, वह भी सूचना आयोग की सख्ती के बाद। इस सूचना के आधार पर डीके जोशी बदहाल होती यमुना की लड़ाई लड़ने के लिए हाईकोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं।
डीके जोशी ने 21 नवंबर 2012 को कार्यालय परियोजना प्रबंधक, यमुना प्रदूषण नियंत्रण इकाई, उत्तर प्रदेश जल निगम से शहर में संचालित सीवेज पंपिंग स्टेशन (एसपीएस) और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से संबंधित जानकारी मांगी थी। इसमें उन्होंने वर्ष 2000 से सूचना उपलब्ध कराए जाने की तिथि तक विभाग द्वारा शहर में बिछाई गई सीवेज लाइन और ट्रंक लाइन, इन पर खर्च होने वाली धनराशि को उपलब्ध कराने वाली संस्था, शहर में स्थापित एसपीएस और एसटीपी की संख्या और इनकी क्षमता, इनकी देखरेख और संचालन में होने वाले खर्च के अलावा एसपीएस और एसटीपी की लॉग बुक (सीवेज का कितना पानी लिफ्ट किया और कितना ट्रीट किया) का ब्योरा मांगा था। विभाग ने पांच सूचनाओं में से एक का भी जवाब डीके जोशी को उपलब्ध नहीं कराया। इस पर जोशी ने सूचना आयोग की शरण ली। वहां भी काफी दिनों तक मामला चलता रहा। उनकी याचिका पर विभाग के अधिकारी तलब किए गए। आयोग ने फटकार लगाई तो विभाग सक्रिय हुआ। अब जाकर गत 16 फरवरी को विभाग ने डीके जोशी को एसपीएस और एसटीपी की लॉग बुक का ब्योरा लगभग 40 हजार पन्नों में उपलब्ध कराया। परियोजना प्रबंधक एवं जन सूचना अधिकारी खालिद अहमद ने 194 नगों में यह सूचना उपलब्ध कराई।
छह महीने में तैयार किया जवाब
डीके जोशी ने वर्ष 2000 से सूचना उपलब्ध कराने तक की तिथि तक जानकारी मांगी थी। सूचना आयोग ने जब जल निगम को जवाब उपलब्ध कराने के निर्देश दिए तो इसे जुटाने में विभाग का दम फूल गया। सूत्रों की मानें तो विभाग को जवाब तैयार करने में लगभग छह महीने लग गए। इसमें से भी अभी पूरे जवाब नहीं दिए हैं।
सूचना का क्या करेंगे जोशी
दरअसल, डीके जोशी ने जो सूचना मांगी है, 40 हजार पन्नों में मिले जवाब के अध्ययन के बाद वह एक रिपोर्ट तैयार करेंगे कि इतने खर्च के बाद आखिर सीवेज का गंदा पानी यमुना में सीधे कैसे जा रहा है। यमुना इतनी दूषित क्यों हो रही है। बता दें, यमुना को बचाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार से मोटी धनराशि आवंटित कराई जाती है, उसके एक बड़े हिस्से का दुरुपयोग होता है।
विभाग को भुगतना पड़ा आर्थिक नुकसान
जल निगम यदि तय समय सीमा में सूचना उपलब्ध करा देता तो 40 हजार पन्नों के जवाब पर आने वाले खर्च से बच जाता। विशेषज्ञों की मानें तो 40 हजार पन्नों की कीमत लगभग 32 हजार रुपये होगी और इनकी फोटो स्टेट पर ही लगभग 12 हजार रुपये खर्च हुए होंगे। यदि विभाग 15 दिन में यह सूचना उपलब्ध करा देता तो यह खर्चा याचिकाकर्ता को उठाना पड़ता।
वर्जन
अभी मुझे पूरा जवाब नहीं मिला है। खर्च का विस्तृत ब्योरा उपलब्ध नहीं कराया गया है। सूचना आयोग में मामला अब भी लंबित है। विभाग को सभी सूचनाएं हर हाल में उपलब्ध करानी होंगी।
- डीके जोशी, सदस्य, अनुश्रवण समिति, सुप्रीम कोर्ट