Amar Ujala: Chandigarh: Sunday, 15th June 2025.
आरटीआई अधिनियम लागू हुए 20 साल हो गए लेकिन चंडीगढ़ में इसकी असली तस्वीर अब भी धुंधली है। पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बना यह कानून आज खुद ही व्यवस्था की लापरवाही का शिकार है। नियमों की आड़ में अधिकारी जवाब देने से बचते हैं और मामूली नियमों का हवाला देकर आवेदन खारिज कर देते हैं। जवाब के लिए लंबा इंतजार कराया जाता है।
आरटीआई को प्रशासन में पारदर्शिता लाने और नागरिकों को सूचना पाने का सांविधानिक अधिकार देने के उद्देश्य से बनाया गया था लेकिन शहर में सबसे ज्यादा आरटीआई फाइल कर चुके एक्टिविस्ट आरके गर्ग का कहना है कि यह कानून अभी पूरी तरह लागू नहीं हो पाया है। इसकी स्पिरिट को जमीनी स्तर पर महसूस नहीं किया जा रहा। शुरुआत में जब यह एक्ट आया तो सरकारी दफ्तरों में यह सोच हावी थी कि पब्लिक हमसे सवाल कैसे कर सकती है। चंडीगढ़ में एस्टेट ऑफिस, हाउसिंग बोर्ड, नगर निगम, शिक्षा, स्वास्थ्य विभाग, अस्पताल और पुलिस जैसे पब्लिक डीलिंग वाले विभागों में सबसे अधिक आरटीआई आवेदन आते हैं। ये वे विभाग हैं, जहां अधिक जवाबदेही व पारदर्शिता की जरूरत है। यदि इन विभागों की सूचनाएं नियमित रूप से वेबसाइट पर डाली जातीं तो आरटीआई की संख्या खुद-ब-खुद कम हो सकती थी।
आरटीआई अधिनियम लागू हुए 20 साल हो गए लेकिन चंडीगढ़ में इसकी असली तस्वीर अब भी धुंधली है। पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बना यह कानून आज खुद ही व्यवस्था की लापरवाही का शिकार है। नियमों की आड़ में अधिकारी जवाब देने से बचते हैं और मामूली नियमों का हवाला देकर आवेदन खारिज कर देते हैं। जवाब के लिए लंबा इंतजार कराया जाता है।
आरटीआई को प्रशासन में पारदर्शिता लाने और नागरिकों को सूचना पाने का सांविधानिक अधिकार देने के उद्देश्य से बनाया गया था लेकिन शहर में सबसे ज्यादा आरटीआई फाइल कर चुके एक्टिविस्ट आरके गर्ग का कहना है कि यह कानून अभी पूरी तरह लागू नहीं हो पाया है। इसकी स्पिरिट को जमीनी स्तर पर महसूस नहीं किया जा रहा। शुरुआत में जब यह एक्ट आया तो सरकारी दफ्तरों में यह सोच हावी थी कि पब्लिक हमसे सवाल कैसे कर सकती है। चंडीगढ़ में एस्टेट ऑफिस, हाउसिंग बोर्ड, नगर निगम, शिक्षा, स्वास्थ्य विभाग, अस्पताल और पुलिस जैसे पब्लिक डीलिंग वाले विभागों में सबसे अधिक आरटीआई आवेदन आते हैं। ये वे विभाग हैं, जहां अधिक जवाबदेही व पारदर्शिता की जरूरत है। यदि इन विभागों की सूचनाएं नियमित रूप से वेबसाइट पर डाली जातीं तो आरटीआई की संख्या खुद-ब-खुद कम हो सकती थी।