Gulistannews:
New Delhi: Sunday, 01 February 2015.
शायद
आप ये जानकर चौंक जाएं कि पिछले पांच सालों में देश में 9 हजार मरीजों के शरीर में HIV संक्रमित खून चढ़ाया जा चुका है। ये बेहद ही चौंकाने
वाला खुलासा हुआ है आरटीआई के जरिए। आरटीआई के जरिए पूछे गए एक सवाल के जवाब में
नेशनल एड्स कंट्रोल प्रोग्राम NACO
ने ये आंकड़ा मुहैया
कराया है, सबसे ज्यादा 1100 केस यूपी में हुए हैं। जबकि गुजरात दूसरा और एक हजार
केस के साथ महाराष्ट्र का नंबर तीसरा है।
20 नवंबर 2014 को RTI
के जरिए पूछे गए सवाल का
इसमें जवाब दिया गया है और जवाब जानकर आपका चौंकना यकीनी है। इसके जरिए पता चला है
कि पिछले 5 साल में ब्लड बैंकों के जरिए
खून लेने वाले 9 हजार लोगों को HIV संक्रमित खून दिया गया। यानि 9 हजार लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ किया गया। उनकी रगों
में एड्स वाला खून डाल दिया गया। RTI
के जरिए नेशनल एड्स
कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन से मिले जवाब में सबसे ज्यादा HIV संक्रमित
खून जो मरीजों को चढ़ाया गया है वो यूपी में चढ़ाया गया है, यूपी में करीब 1100
मरीजों को HIV संक्रमित खून चढ़ाने की बात सामने आई है, यानि 1100
लोगों ही नहीं 100 परिवारों के साथ खिलवाड़ किया गया।
मरीजों
को एड्स वाला खून चढ़ाने के मामले में गुजरात का नंबर दूसरा है। आरटीआई के जरिए
मिली जानकारी के मुताबिक पिछले 5
सालों में यूपी के बाद
सबसे ज्यादा HIV संक्रमित खून जो मरीजों को
चढ़ाया गया है वो गुजरात में चढ़ाया गया है। आरटीआई के आकड़े चौंकाने वाले हैं। सिर्फ
महाराष्ट्र में अप्रैल से अक्टूबर,
2014 तक 80 ऐसे लोग थे जिन्हें ब्लड ट्रांसफ्यूजन के चलते एचआईवी
हुआ है। आंकड़ों की मानें तो पिछले पांच साल में महाराष्ट्र में लगभग एक हजार
मरीजों को ब्लड ट्रांसफ्यूजन के चलते HIV
संक्रमित खून चढ़ाया गया
है।
सिर्फ
महाराष्ट्र की बात करें तो पिछले पांच सालों के आंकड़े हैरान करने वाले हैं। साल 2010-11 में यहां 182
ऐसे मामले हो चुके हैं। 2011-12 में 283
लोगों को HIV संक्रमित खून दिया गया। 2012-13 में 226
मामले सामने आए। 2013-14 में 198
मामले सामने आए। जबकि
साल 2014-15 में अक्टूबर तक 80 मरीजों को संक्रमित खून चढ़ाया गया। बड़ा सवाल है कि
आखिर मरीजों की जिंदगी के साथ ये खिलवाड़ क्यों और कैसे हो रहा है। कोई जानबूझकर तो
मरीजों को HIV संक्रमित खून नहीं देगा, तो फिर ये जानलेवा लापरवाही कैसे हो रही है। कैसे
जिंदगी देने की बजाय मरीजों की रगों में भरा जा रहा है मौत वाला खून।
कैसे
HIV संक्रमित खून चढ़ाया जा रहा है
रक्तदान, यानि महादान। इन नारों के साथ अक्सर हम ब्लड डोनेशन
कैंप अपने आस पास देखते हैं। यहां लोग रक्तदान के रूप में महादान करते हैं। लोगों
की जिंदगी बचाने में अपना योगदान देते हैं। लेकिन जानकारों का मानना है कि अगर
रक्तदान में पूरी सावधानी नहीं बरती गई तो खून में संक्रमण होने की संभावना बढ़
जाती है।
दरअसल
बहुत से रक्तदान शिविर जो लगाए जाते हैं खासकर ग्रामीण इलाकों और छोटे शहरों में।
उनमें खून की जांच का पूरा इंतजाम नहीं होता। आपको बताते हैं कि रक्तदान में किन
बातों का ख्याल का जाता है। रक्तदान में ब्लड ग्रुप चेक किया जाता है क्योंकि उसी
हिसाब से खून को रखा जाता है और मरीजों को दिया जाता है। फिर खून की पूरी जांच के
लिए ELISA, HBV, HCV और मलेरिया टेस्ट किया जाता
है। ELISA टेस्ट दरअसल HIV की जांच का स्क्रीनिंग टेस्ट होता है।
लेकिन
जानकारों का मानना है कि अगर कोई HIV
संक्रमित शख्स खून दे
देता है और उसका संक्रमण शुरुआती दौर का होता है तो उसके संक्रमण का पता लगने में
एक साल तक लग जाता है। इससे ELISA
जैसे टेस्ट में उसके HIV पॉजिटिव होने की बात पता नहीं लगती और वो खून मरीज को
चढ़ा दिया जाता है।
इसलिए
जानकारों की राय है कि जब भी खून मरीज को चढ़ाया जाए उससे पहले उसकी जांच की जाए, ये सबसे सुरक्षित है। जानकारों के मुताबिक ELISA और NAT
टेस्ट दो ऐसे टेस्ट हैं
जो खून जमा करने के बाद ब्लड बैंक द्वारा किए जाते हैं। हर ब्लड बैंक के लिए खून
की जांच करना जरूरी होता है। लेकिन अहम ये है कि ELISA टेस्टिंग
का विंडो पीरियड है 3 से 6 महीने का,
जबकि NAT का 7
दिन।
यानी
अगर कोई शख्स HIV से 8 दिन पहले संक्रमित हुआ है और उसने ब्लड डोनेट किया है
तो इस रक्त के संक्रमण की जानकरी NAT
टेस्ट से ही मिल सकती
है। जबकि ELISA टेस्ट के माध्यम से संक्रमण के
3 से 6
महीने के बाद ही पता चल
सकता है। लेकिन देशभर के ज्यादातर ब्लड बैंकों में ELISA टेस्ट
ही होता है। हालांकि RTI से मिले आंकड़े चौंकाने वाले
हैं और ये साफ कह रहे हैं कि मरीजों को खून चढ़ाने से पहले उस खून की जरूर जांच की
जाए।